राघवाचार्य स्तोत्रम्- दर्शन महाविद्यालय ऋषिकेश संस्थापक | जगद्गुरु शंकराचार्य स्तुति हिंदी में , Guru-sanskrit-stotram-aur-hindi-stuti
🙏श्रीगुरुराघवसप्तपदी🙏
1008 श्रीवैकुण्ठवासिसद्गुरुराघवाचार्यस्तोत्रम्🪷🙏
श्रीगुरुराघवपरम्पराप्तशिष्यः भक्तकविः- सन्दीपकोठारी🙇♀️🙏🚩
वन्दते मातरं शारदां पावनीं
ज्ञानबोधप्रदां निर्मलां बुद्धिदाम्।
पुण्यविद्यास्थलं दर्शनस्थापकं
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।1।।
योगिनं ध्यानिनं ज्ञानिनं बोधकं
श्रीप्रभुप्रेमरागे सदानन्दितम्।।
ते कृपासीत्तया श्रेष्ठप्राप्तिर्मया
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।2।।
स्वप्नतोः दर्शने दर्शितं दर्शनं
योगसिद्ध प्रभो तत्त्वयारोपितम्।
गांगतीरे महन्निर्मलं पापहं
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।3।।
शैशवे याति विद्यास्थलं गेहतो
यौवने विप्ररूपत्वशाली शिशुः।।
धन्यभूमिस्तु मे गांंगतीरे स्थिता
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।4।।
सत्यरूपं तपोमूर्तिरूपन्तथा।
रक्ष सन्दीपकं शिष्यरूपं गुरो।।
दारुणं दुःखमेतद्धि मे नाशय
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।5।।
योगशास्त्रे त्वया भास्करो ग्रंथितः
तत्पवित्रो तथा ग्रंथसिद्धोsस्ति सः।।
देहि बुद्धिं गुरो निर्मलां मे सदा
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।6।।
मातृरूपे हि मे वाचि बुद्धौ स्थिते
हेsम्ब हे निर्मले निर्मलं मां कुरु।
सद्गुरूणां कृपा दीयतां मे सदा
श्रीगुरुं राघवं नौम्यहं सादरम्।।7।।
श्रीसद्गुरुकृपेप्सुः कविः- सन्दीपशर्माकोठारी🚩🙏🚩🙇♀️🙏🙏
नोटः- यह स्तोत्र परम योगी सिद्ध योगी, पूज्यपाद 1008 वैकुंठ वासी श्री राघवाचार्य जी महाराज एवं उनके द्वारा स्थापित श्री दर्शन महाविद्यालय विद्या तीर्थ गंगा धाम को समर्पित है।
दैनन्दिनी व्याकुलितपिपासा🥲🙏🙇♀️🚩
श्रीभावदलघुभावांशशिशुकविः- सन्दीपकोठारी🙇♀️🙏
मैं कौन हूँ, मौन हूँ?
मौन हूँ, पर कौन हूँ।
ये नाम इस तन का
ये विचार इस मन का
न ये तन मेरा
न ये मन मेरा
*"ये मेरा"* भी न मेरा
मैं आत्मा हूँ, पर अतृप्त
तृप्ति है उसमें समा जाने की
मैं मृग हूँ पिपासु
प्यास है उन चरणामृत की
मैं कौन हूँ-?
घुलनशील पदार्थ हूँ
घुलना है उस पदार्थ शान्तितोय में
ममतामयी अनन्त वसुधारा में
पर,फिर भी
मैं कौन हूँ ? मौन हूँ।
कहीं ये दुनिया धोखा तो नहीं
एक सपना तो नहीं
ये धरती आकाश
ये नभ तारे, ये नदी के किनारे
ये शाम और सवेरे
ये दुःख अंधकार से घनेरे
सब कुछ मेरे अस्तित्व तक हैं?
फिर तो मानो
या सच में इसको जानो
यह एक सपना है।
कुछ न मेरा अपना है।
फिर किसका यह सपना है?
शीततानुगामी गर्मी में तपना है?
अब कितना सत्य नाम जपना है?
घुलता क्यों नहीं अब
उन श्रीशान्ति में सब
पर, फिर भी यथार्थ
मैं कौन हूँ- बस मौन हूँ।
रक्ष सत्वसत्यरूप हे ईश्वर, सन्दीपकशिशुमिमं महेशे🙏🚩🙏
हे जगद्गुरो आदि शंकर
माना तुमको निज गुरु ही पर
बस यह उपकार कर देना मुझ पर
अनाथ शिशु को मार्ग बता दो
श्रीश्रीनाथ पादरज लगा दो
श्रीश्रीपुत्र क्यों है दुखियारा
मिलन विरह की अग्नि बुझा दो।
हे परमेश परात्पर देवा
ब्रह्मगुरू तुम हे महादेवा
पुत्र शिष्य शिशु इसकी रक्षा
करो मातृपदरज दिखला दो।।
हे प्रभु श्रीश्रीवेङ्कटरमणा
बद्रीश्वर हे कल्मष हरणा।
हे मां मध्यम रूप अनूपा
श्रीश्रीलक्ष्मि हे ममता रूपा
कृपा करो इस अश्रुजलधि पर
कलुषित तन मन शुद्ध बनाकर
कितना रोये कब तक रोये
कब तक कितने अश्रु बहाये
मुक्त करो अब सह शान्ति से
या निजचरणचिह्न बतला दो।।
धैर्य शान्ति संयम भर दो मां
सत्य शुद्ध तन मन कर दो ये।
शक्ति सहन वहन की दे दो
तव पद मिलन हेतु को हे माँ।।
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