रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय | पितृदोष के उपाय, लक्षण, पूजा

रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय| पितृदोष के उपाय, लक्षण, पूजा 

रावण का नाम सुनकर अक्सर समाज में निन्दित व्यक्ति का स्मरण किया जाता है लेकिन आपको बता दें कि रावण के बराबर विद्वान भी कोई नहीं था। रावण ने ही- जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले इस अद्भुत शिवताण्डव स्तोत्र की रचना की। 

रावण के द्वारा विरचित रावण संहिता एक अद्वितीय ज्योतिषीय, तांत्रिक एवं रहस्यों से भरा ग्रन्थ है। रावण संहिता में पितृदोष, ग्रहदोष, तंत्रमुक्ति आदि लोकोपयोगी विषयों की भी चर्चा की गयी है। 

जी हां आज के इस आर्टिकल में हम आपको हो रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के लक्षण एवं पितृ दोष के उपाय बताने जा रहे रावण ने अपनी संहिता में अर्थात रावण संहिता में पितृ दोष के उपाय बताएं पता है यदि आप भी पितृ दोष के लक्षणों से ग्रसित हैं तो आज हम आपको रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय बताने जा रहे हैं। 

पितृ दोष के लक्षण क्या होते हैं पितृ दोष क्यों होता है इस दोष के कारण क्या है एवं पितृ दोष के उपाय पितृ दोष को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए इत्यादि विभिन्न बातों की चर्चा हम करने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं सबसे पहले पितृ दोष के लक्षण।


रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के लक्षण

पितृ दोष एक बहुत ही भयानक दोष है जिसके कारण जीवन में विभिन्न प्रकार के संकट आते हैं। पितृ दोष के बहुत सारे लक्षण हैं जिनसे आसानी से यह ज्ञात हो जाता है कि आप भी पितृ दोष के शिकार हैं। ऐसी स्थिति में पितृ दोष के उपाय अवश्य करने चाहिए। पितृ दोष के कुछ विशेष लक्षण यहां बताए गये हैं।

  1. संतान की समस्या होना
  2. शादी में रुकावट आना
  3. आर्थिक रूप से परेशान होना
  4. शादी में रुकावट आना
  5. स्वास्थ्य का खराब रहना
  6. मानसिक स्तर से परेशान
  7. पिता के साथ अच्छे संबंध ना होना।


उपरोक्त पितृ दोष के कुछ विशेष लक्षण हैं। इसके अतिरिक्त भी पितृ दोष के अनेक प्रकार के लक्षण हैं। निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि जीवन में सभी प्रकार की जो समस्याएं उत्पन्न होती हैं। 

कहीं ना कहीं इसमें पितृदोष भी एक बहुत बड़ा कारण होता है। रावण संहिता में पितृ दोष को दूर करने के लिए बहुत प्रकार के उपाय बताए गए हैं। आइए जानते हैं रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय


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रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय

पितृ दोष से बचना चाहते हैं और अपने पितरों को खुश रखना चाहते हैं तथा पितरों की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय अवश्य करें। जब तक पितरों की कृपा नहीं होती है। किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल पाती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तीन प्रकार के ऋण होते हैं। 

देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण- इन तीनों ऋणों से मुक्त होने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के याग, यज्ञ अनुष्ठान आदि करने होते हैं। हमारे जीवन के ऊपर हमारे पितृ देवताओं का बहुत बड़ा आशीर्वाद एवं अनुग्रह होता है। 

अतः हमें उनके निमित्त बहुत सारे कार्य करने चाहिए। जिससे कि हम भी पितृ ऋण से मुक्त हो सकें। रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष को दूर करने के कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं

  • किसी विद्वान ब्राह्मण को एक मुट्ठी तिल का दान करें।
  • किसी गरीब लड़की की शादी करवाएं। इससे भी पितृ दोष दूर होता है।
  • प्रतिदिन भगवत गीता का पाठ करने से भी पितृदोष की शांति होती है।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • घर में पीपल और बरगद का पेड़ लगाने से पितृ दोष दूर होता है।
  • अपने इष्ट देवता अर्थात कुल देवता की पूजा अवश्य करें। इससे पितृ देवता भी प्रसन्न होते हैं।
  • पवित्र नदी में काले तिल बहाने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
  • महामृत्युंजय स्तोत्र का पाठ एवं नवग्रह स्तोत्र का पाठ करने से भी पितृ देवता प्रसन्न होते हैं।
  • श्राद्ध पक्ष में अपनी पितरों का तर्पण अवश्य करें।
  • गया तीर्थ में एक बार पिंड दान देने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है


उपरोक्त बताए गए पितृदोष के कुछ विशेष उपाय हैं जो की बहुत ही प्रभावी हैं रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय करने से पितृ दोष की शांति को जाती है। इसके अतिरिक्त पितृ दोष से जुड़े कुछ विशेष अन्य बातें भी हम आपको बताने जा रहे हैं


पितृ दोष कब तक रहता है?

जब तक अपनी पितरों की शांति न कराई जाए तब तक पितृ दोष बना रहता है। पितृ लोक में पितृ जब तक मुक्त नहीं हो जाते हैं तब तक पितृदोष का सामना करना पड़ता है। अतः पितृ दोष को दूर करने के लिए इसके उपाय अवश्य करने चाहिए।


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पितृ दोष की पूजा कहां पर होती है

पैसे तो पितृ दोष की पूजा घर पर भी की जाती है लेकिन शीघ्र पितृ दोष शांति पाने के लिए नासिक, गया, हरिद्वार, बद्रीनाथ, रामेश्वरम आदि तीर्थों में पितृ दोष की पूजा करवानी चाहिए। इन तीनों में पित्र दोष की पूजा करने से तुरंत ही पितृ दोष शांति मिल जाती है। 


पितृ दोष की पूजा कब करनी चाहिए

भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होती है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृ दोष की पूजा करवाने का विशेष फल मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी श्राद्ध पक्ष में पितृ दोष की पूजा करने से शीघ्र पितृ दोष की शांति हो जाती है। श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों को तर्पण एवं पिंडदान आदि देकर उनकी यथा विधि से पूजा करनी चाहिए। 


पितृ दोष और कालसर्प दोष में अंतर

सामान्य रूप से पितृ दोष एवं कालसर्प दोष  में बहुत अन्तर है। यद्यपि कुण्डली में ये दोनों दोष कुछ समान ही हैं। तथापि पितृदोष कालसर्प दोष से बहुत अलग है। जब जन्म कुंडली में राहु एवं केतु के मध्य में सभी ग्रह आ जाते हैं तो इससे कालसर्प दोष का निर्माण होता है। कालसर्प दोष लगभग 12 प्रकार का माना जाता है।

इसके अतिरिक्त जब जन्म कुंडली के नौवें भाव में सूर्य एवं केतु अथवा सूर्य एवं राहु की युति होती है तो इससे पितृ दोष बनता है। यह कालसर्प दोष एवं पितृ दोष में सामान्य अंतर है। पितृ दोष एवं कालसर्प दोष को गहराई से समझने के लिए कुंडली का विश्लेषण करना अति अनिवार्य है।


पितृ दोष के प्रकार

कहा जाता है कि यदि पितृ दोष की शांति नहीं करवाई जाए तो पितर उस कुल का रक्त पान करने लगते हैं। अर्थात् उस कुल में उनके पुत्र, पौत्र आदि का रुधिर पान करने लगते हैं। अतः पितृ दोष की शांति अवश्य करनी चाहिए। पितृ दोष सामान्यतः दो प्रकार के माने जाते हैं। 

  1. सूर्यकृत पितृ दोष
  2. मंगलकृत पितृ दोष


जिस जातक की कुंडली में सूर्यकृत पितृ दोष होता है। ऐसे जातक का अपने कुटुंब परिवार में अपने से बड़ों के साथ विरोध को नहीं लगता है।


जिस जातक की कुंडली में मंगलकृत पितृ दोष होता है। ऐसे जातक अपने कुटुंब परिवार में अपने से छोटे भाई बंधुओं से विरोध करने लगते हैं।


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