Ashok Ke Shilalekh | अशोक के शिलालेख: अभिलेख, वृहद शिलालेख, लघु शिलालेख, मुख्य स्तंभलेख
भारत में सम्राट अशोक का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। सम्राट अशोक भारत के महान शासक हुए हैं जिन्होंने अपनी महानता का परिचय विभिन्न महान कार्यों से दिया है। अशोक के विभिन्न अभिलेख अशोक की महानता का साक्षात् परिचय देते हैं।
सम्राट अशोक नेे अपने अभिलेखों के माध्यम से तत्कालीन बौद्ध धर्म का प्रसार बहुत ही अच्छे ढंग से किया है। सम्राट अशोक मौर्य वंश के शासक के रूप में जाने जाते हैं और अशोक ने अपने विभिन्न अभिलेख विभिन्न शिलाओं पर, स्तंभों पर, गुफाओं आदि पर उत्कीर्ण करवाए।
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अशोक के शिलालेख (Ashok Ke Shilalekh) अक्सर ब्राह्मी अथवा खरोष्ठी लिपि में मिलते हैं, जिनकी भाषा प्राकृत है। प्यारे मित्रों आज के इस लेख में- अशोक के अभिलेख, अशोक के शिलालेख (Ashok Ke Shilalekh), अशोक के प्रमुख शिलालेख, लघु शिलालेख, अशोक के प्रमुख स्तंभ लेख, अशोक के लघु स्तंभ लेख, अशोक के गुहालेख आदि की विस्तृत चर्चा की जा रही है।
यह विषय विभिन्न संस्कृत, हिंदी आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो आइए विषय को प्रारंभ करते हैं- अशोक के शिलालेख -Ashok Ke Shilalekh
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अभिलेख क्या होता है (What Is Abhilekh)
प्राचीन काल में विभिन्न राजा महाराजा अपने राज्य संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों को चिरकाल तक स्थापित करने के लिए विभिन्न पत्थरों पर, चट्टानों पर, गुफाओं पर, स्तंभों आदि पर अपने लेख लिखवा देते थे जिनको कि अभिलेख के रूप में जाना जाता है।
अभिलेख के अंतर्गत शिलालेख, स्तंभ लेख, गुहालेख आदि सभी समाहित हो जाते हैं। आज हम इसी क्रम में अशोक के अभिलेख की चर्चा कर रहे हैं।
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शिलालेख क्या होता है (What Is Shilalekh)
शिलालेख शब्द का अर्थ, सुनने से ही स्पष्ट हो जाता है। शिला का मतलब होता है- पत्थर। पत्थरों पर लिखे गए लेख को ही शिलालेख के रूप में जानते हैं।
प्राचीन काल में राजा महाराजा अपने संबंध में अथवा अपने राज्य के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बातें पत्थरों पर या स्तंभ आदि पर लेख लिखवा देते थे। पत्थरों पर लिखे गए लेखों को शिलालेख के रूप में जाना जाता है।
तो आइए अब हम अपने मूल विषय- अशोक के शिलालेख (Ashok Ke Shilalekh), अशोक के मुख्य शिलालेख, स्तंभ लेख आदि की चर्चा प्रारंभ करते हैं।
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अशोक के अभिलेख (Ashok Ke Abhilekh)
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार हेतु एवं तत्कालीन समाज में सन्देशों को प्रदान करने के लिए अपने अभिलेख- विभिन्न स्तंभ, शिला, गुफाओं आदि में लिखवाए। अशोक के अभिलेखों को विद्वानों ने पांच भागों में वर्गीकृत किया। अशोक के अभिलेख के 5 भाग निम्नलिखित हैं।
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इतिहासकारों ने अशोक के अभिलेखों को उपरोक्त पांच भागों में वर्गीकृत किया है। अशोक के शिलालेख (Ashok Ke Shilalekh) अथवा अशोक के अभिलेख से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं।
चूंकि यह वेबसाइट विभिन्न संस्कृत एवं हिंदी आदि परीक्षाओं के लिए समर्पित है। अतः इसी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए यूजीसी नेट संस्कृत आदि परीक्षा को केंद्र में रखकर अशोक के प्रमुख शिलालेख, स्तंभ लेख आदि की विस्तार से चर्चा की जा रही है।
उपरोक्त पांच भागों में सबसे पहले अशोक के प्रमुख शिलालेखों को समझिए। तो आइए जानते हैं- अशोक के प्रमुख शिलालेख
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अशोक के वृहद शिलालेख (Ashok Ke Pramukh Shilalekh)
सम्राट अशोक के अभिलेखों का सबसे पहला वर्गीकरण है- अशोक के वृहद शिलालेख. अशोक के वृहद शिलालेख से तात्पर्य है- अशोक के प्रमुख अथवा मुख्य शिलालेख।
सम्राट अशोक के कुल 14 वृहद शिलालेख प्राप्त हुए हैं। यह अशोक के 14 मुख्य शिलालेख आठ अलग-अलग जगहों पर मिले हैं। अशोक के 14 प्रमुख शिलालेख निम्न 8 स्थानों पर मिले हैं
| स्थान / जगह |
| गुजरात |
| पाकिस्तान |
| पेशावर |
| महाराष्ट्र |
| उत्तराखण्ड |
| पुरी (उड़ीसा) |
| उड़ीसा |
| आंध्र प्रदेश |
अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उन में वर्णित विषय नीचे दिए जा रहे हैं। अशोक के 14 शिलालेख निम्न 08 स्थानों पर मिले हैं।
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शिलालेख 01- गिरनार
अशोक के मुख्य शिलालेखों में गिरनार का शिलालेख ही एकमात्र ऐंसा शिलालेख है जहां पर अशोक के पूरे 14 लेखों का समूह प्राप्त होता है। गिरनार गुजरात के काठियावाड़ में जूनागढ़ के पास में है। इस शिलालेख की भाषा प्राकृत है तथा लिपि ब्राह्मी है।
गिरनार के शिलालेख में अशोक ने हिंसा न करने का उपदेश दिया है। इसी गिरनार शिलालेख में रुद्रदामन का अभिलेख व स्कन्दगुप्त के दो अभिलेख भी मिलते हैं। इस गिरनार शिलालेख की खोज 1822 में कर्नल टाड के द्वारा की गयी थी।
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गिरनार शिलालेख की कुछ पंक्तियाँ
इयं धम्मलिपि देवानां प्रियेन प्रियदसिना राजा लेखापिता। इध न किं चि जीवम् आरभित्या प्रजूहितव्यम्।
शिलालेख 02- शहबाजगढी
शाहबाजगढ़ी वर्तमान पाकिस्तान पेशावर (मर्दान जिले) में स्थित है। यहां पर प्राप्त हुए अशोक के शिलालेख की भाषा प्राकृत एवं लिपि खरोष्ठी है। अशोके के इस शहबाजगढी शिलालेख की खोज 1836 में जनरल कोर्ट के द्वारा की गई थी।
शिलालेख 03- मानसेहरा
वर्तमान पाकिस्तान के हजारा जिले में पेशावर के निकट मान सेहरा नामक स्थान है जहां पर अशोक का यह शिलालेख प्राप्त होता है। मान सेहरा में प्राप्त हुए शिलालेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि खरोष्ठी है।
इस शिलालेख में अशोक ने सज्जन संगति एवं नम्रता पूर्वक व्यवहार करने का उपदेश दिया है। यह शिलालेख तीन अलग अलग शिलाओं पर लिखा गया है। पहली दो शिलाएँ जनरल कनिंघम के द्वारा खोजी गयी।
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शिलालेख 04- सोपारा
सोपारा नामक जगह महाराष्ट्र के (थाणे) पालघर जिले में स्थित है। सोपारा नामक स्थान में भी अशोक के मुख्य शिलालेख प्राप्त हुआ इसकी भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है।
शिलालेख 05- कालसी
कालसी का शिलालेख काफी प्रसिद्ध है जो कि उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है। इसकी लिपि भी ब्राह्मी तथा भाषा प्राकृत है।
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शिलालेख 06- धौली
धौली नामक स्थान उड़ीसा के पुरी जिले में मिलता है। इस स्थान पर अशोक का वृहद शिलालेख प्राप्त हुआ है। इसकी भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। धौली जगह पर पाए गए इस शिलालेख में अशोक ने पशु हिंसा की निंदा की है। धौली में इस शिलालेख का पता 1837 में किटो ने लगाया था।
शिलालेख 07- जौगढ
जौगढ नामक शिलालेख उड़ीसा के जौगढ (गंजाम) जिले में स्थित है। इसकी भाषा प्राकृत व लिपि ब्राह्मी है। इस शिलालेख में कलिंग देश की जनता के साथ पुत्र जैंसा व्यवहार करना चाहिए , ऐसा उपदेश दिया गया है। जौगढ शिलालेख का पता 1850 में वाल्टर इलियट ने लगाया था।
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शिलालेख 08- एरागुडि या एर्रिगुडि
एरागुडि शिलालेख आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में मिलता है। इस शिलालेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है।
सम्राट अशोक के उपरोक्त मुख्य शिलालेख 8 जगहों पर मिले हैं। उपरोक्त 8 जगहों में से गिरनार एक ऐंसी जगह है जहां पर कि अशोक के पूरे 14 अभिलेख समूह प्राप्त हुए हैं। आइए, अब अशोक के उपरोक्त वृहद शिलालेखों को थोड़ा विस्तार से समझ लीजिए।
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अशोक के लघु शिलालेख (Ashok Ke Laghu Shilalekh)
सम्राट अशोक के अभिलेखों का दूसरा वर्गीकरण है- लघु शिलालेख। अशोक के लघु शिलालेखों की संख्या 7 है जो कि 6 स्थानों पर प्राप्त होते हैं। अशोक के लघु शिलालेख एवं उनका स्थान निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है।
- मस्की- कर्नाटक रायचूर
- रूपनाथ- मध्य प्रदेश (जबलपुर)
- गुर्जरा - मध्य प्रदेश (दतिया जिला)
- भाबरू - राजस्थान (जयपुर- विराटनगर)
- सहसराम - बिहारा (शाहाबाद जिला)
- महास्थान - बांग्लादेश (पुंदरुनगर)
जैंसे कि हमने आपको बताया अशोक के अभिलेखों को इतिहासकारों ने पांच भागों में वर्गीकृत किया है। जिसमें कि तीसरा वर्गीकरण है- अशोक के प्रमुख स्तंभ लेख।
स्तंभ लेख से तात्पर्य यह है कि ऐंसे लेख जिनको अशोक ने बड़े-बड़े स्तंभों या खंभों पर खुदवाया उन्हें स्तंभ लेख कहते हैं। इससे पहले अशोक के शिलालेख की चर्चा की गई। आइए, अब जानते हैं- अशोक के प्रमुख स्तंभ लेख
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अशोक के प्रमुख स्तंभ लेख- Ashok Ke StambhLekh
अशोक के मुख्य स्तंभ लेखों की संख्या 7 है। यह स्तंभ लेख भी छह अलग-अलग जगहों पर मिलते हैं। अशोक के प्रमुख स्तंभ लेख निम्न स्थानों पर पाए गए हैं।
पहला स्तंभलेख- टोपरा
अशोक के मुख्य स्तंभ लेखों में टोपरा स्तंभ लेख बहुत ही प्रसिद्ध है। टोपरा का यह स्तंभ लेख हरियाणा के टोपरा (यमुनानगर) नामक स्थान में पाया गया था। बाद में चलकर तुगलक वंश के फिरोजशाह तुगलक ने हरियाणा से इस स्तंभ लेख को दिल्ली मंगवा दिया।
यह स्तंभ लेख अशोक का एक ऐंसा स्तंभ लेख है जिसमें कि अशोक के सातों अभिलेख मौजूद हैं। ज्ञातव्य है कि प्रसिद्ध विद्वान जेम्स प्रिंसेप ने सन 1837 में इसी स्तंभ लेख को पढ़ने में सफलता प्राप्त की थी।
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दूसरा स्तंभलेख- मेरठ
अशोक का दूसरा स्तंभ लेख जो कि मेरठ में पाया गया था लेकिन बाद में चलकर फिरोजशाह तुगलक ने इसे भी दिल्ली मंगवा दिया। वर्तमान में यह दिल्ली विश्वविद्यालय के निकट मौजूद है। इसमें कुल 5 ही अभिलेख मिलते हैं।
तीसरा स्तंभलेख- कौशाम्बी
कौशांबी का यह शिलालेख इलाहाबाद में स्थित है। 14 वीं शताब्दी में इस स्तंभ लेख को फिरोजशाह तुगलक ने प्रयाग में स्थापित कर दिया। आगे चलकर 16 वीं शताब्दी में अकबर ने इस स्तंभ लेख को प्रयाग से वर्तमान इलाहाबाद में स्थापित कर दिया।
कौशाम्बी के इस स्तंभ लेख में अशोक के 6 अभिलेख मिलते हैं। इसके अतिरिक्त समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख एवं जंहागीर का एक अभिलेख भी इसी स्तंभ पर उत्कीर्ण है।
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चौथा स्तंभ लेख- लौरिया नन्दनगढ
लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ लेख बिहार के बेतिया के निकट पश्चिमी चंपारण जिले में पाया गया है। अशोक का यह एक ऐंसा स्तंभ लेख है जिसमें कि मोर का चित्र पाया गया है। यंही पर बेतिया के निकट रामपुरवा नामक जगह में अशोक का एक अन्य स्तंभ लेख भी मिला है।
पांचवां स्तंभलेख- लौरिया अरेराज
अशोक का यह स्तंभ लेख भी बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में प्राप्त होता है।
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अशोक के अन्य शिलालेख
अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं लघु शिलालेख तथा अशोक के मुख्य स्तंभ लेख के विषय में आप विस्तार से पढ़ चुके हैं। इसके अतिरिक्त भी अशोक के लघु स्तंभ लेख एवं गुहालेख पाए जाते हैं जो कि परीक्षा दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण नहीं है। अतः उनका उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
- अशोक के शिलालेख में प्रयुक्त भाषा कौन सी है?
अशोक के शिलालेख प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं। अशोक का केवल एक मात्र अभिलेख ऐंसा है जिसमें आरमाइक और ग्रीक भाषा का प्रयोग किया गया।
- किस अभिलेख में अशोक का नाम मिलता है
अशोक के मात्र दो अभिलेख ऐसे हैं जिनमें स्पष्ट रूप से अशोक का नाम उल्लेख किया गया है। वे अभिलेख हैं- मस्की का लघु शिलालेख एवं गुर्जरा का लघु शिलालेख।
ये दो शिलालेख ऐंसे हैं जिनमें अशोक का स्पष्ट नाम लिखा हुआ है। इनके अतिरिक्त अन्य शिलालेखों में अशोक को को देवताओं का प्रिय (देवानाम्प्रिय) नाम से संबोधित किया गया है।
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- गुर्जरा अभिलेख कहां है?
अशोक का गुर्जरा अभिलेख मध्यप्रदेश के दतिया नामक स्थान में पाया गया है।
- अशोक के शिलालेख को सर्वप्रथम किसने पढ़ा
सन 1837 में अशोक के शिलालेख को सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा। यह शिलालेख टोपरा नामक स्तंभ लेख था।
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- शिलालेख क्या होता है
ऐंसे लेख जो कि पत्थरों पर लिखे जाते हैं शिलालेख कहलाते हैं। प्राचीन काल में राजा महाराजा विभिन्न शिलाओं पर अपने लेख लिखवाते थे, जिनको शिलालेख कहते हैं।
- अशोक के शिलालेख की लिपि
अशोक के अभिलेखों में उपयोग में लाई गई लिपि ब्राह्मी तथा खरोष्ठी है। अशोक के शिलालेखों की लिपि ब्राह्मी एवं खरोष्ठी ही मुख्य रूप से है। इसके अतिरिक्त एक शिलालेख में (यूनानी) ग्रीक लिपि का भी प्रयोग मिलता है।
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अशोक के शिलालेख निष्कर्ष (Ashok Ke Shilalekh)
प्यारे पाठकों, हमें उम्मीद है कि आज के इस "अशोक के शिलालेख-Ashok Ke Shilalekh" नामक पाठ में बताया गया यह विषय आपको काफी पसंद आया होगा और अशोक के अभिलेख, अशोक के शिलालेख, अशोक के मुख्य शिलालेख, अशोक के लघु शिलालेख, अशोक के मुख्य स्तंभ लेख, अशोक के लघु स्तंभ लेख, अशोक के गुहालेख आदि के बारे में आपको अच्छे ढंग से जानकारी मिली होगी।
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