Aham Brahmasmi Meaning |Aham Brahmasmi Meaning In Hindi (Aham Brahmasmi Hindi)
अहम् ब्रह्मास्मि क्या है? Aham Brahmasmi In Hindi
अहम् ब्रह्मास्मि यह एक महावाक्य है जो कि यजुर्वेद से लिया गया है। अहम् ब्रह्मास्मि यह महावाक्य यजुर्वेद के बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है। जीव और ब्रह्म एक ही है- इस प्रकार जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी इस महावाक्य का प्रतिपादन किया।
अद्वैत वेदांत में यह महावाक्य अति प्रसिद्ध है। अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य सभी उपनिषदों का सार और मुक्ति का द्वार है। वास्तव में जीवन का सार क्या है, मैं कौन हूँ, क्या ब्रह्म मुझसे अलग है इत्यादि गूढ प्रश्नों का रहस्यात्मक उत्तर है- अहं ब्रह्मास्मि।
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अहं ब्रह्मास्मि का शाब्दिक अर्थ (Aham Brahmasmi Meaning)
अहम् ब्रह्मास्मि में तीन पद हैं। अहम् + ब्रह्म + अस्मि। अहम्= मैं, ब्रह्म= सर्वकारण परब्रह्म, अस्मि= हूँ। यंहा अंग्रेजी में अहम् ब्रह्मास्मि का अर्थ दिया जा रहा है- Aham Brahmasmi - Aham= I, Brahma = God (That), Asmi= I am (I am that)
अहम् का अर्थ होता है- मैं (आत्मा) यंहा मैं कहने से शरीर को ग्रहण नहीं किया जाता क्योंकि शरीर नाशवान है। मैं का अभिप्राय है- आत्मा। अर्थात् मैं जो आत्मा हूँ। मेरे अन्दर जो आत्मा है- वह मैं।
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ब्रह्म का अर्थ है- सर्वकारण, अनादि, शुद्ध चैतन्य वाला। Creater, God परमात्मा, परमेश्वर। ब्रह्म शब्द का अर्थ यंहा कोई देवता विशेष या ब्रह्मा देवता नहीं है। ब्रह्म नपुंसक लिंग का शब्द है। अतः ब्रह्म अर्थात सब कुछ। इसे परम सत्ता, परमेष्ठी, परब्रह्म आदि कुछ भी नाम दिया जा सकता है।
अस्मि- एक क्रिया पद है , जिसका अर्थ होता है- हूँ। अस्मि कहने से अपने अस्तित्व का बोध होता है।
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अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य का शाब्दिक अर्थ (Aham Brahmasmi Meaning In Hindi)
इस प्रकार अहं ब्रह्मास्मि इस पूरे वाक्य का अर्थ हुआ- मैं (आत्मा) ब्रह्म हूँ। मुझमें ही ब्रह्म रहता है। मैं आत्मस्वरूप, अजर, अमर, अविनाशी हूँ। ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्ति मुझमें ही विद्यमान है। यह इस महावाक्य का सामान्य शाब्दिक अर्थ है।
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अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य का भावार्थ- व्याख्या (Aham Brahmasmi Explanation)
वेदान्त दर्शन के मुख्यत तीन सम्प्रदाय अति प्रसिद्ध हैं- द्वैत, अद्वैत एवं द्वैताद्वैत। अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य अद्वैत का समर्थन करता है। शंकराचार्य का अद्वैत वाद कहता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ। मैं ही संसार का सर्वश्रेष्ठ संप्रभु हूँ।
यंहा ध्यातव्य यह है कि- अहं ब्रह्मास्मि इस महावाक्य का गूढार्थ किसी अहंकार को अभिलक्षित नहीं करता है बल्कि यह बताता है कि वह परम ईश्वर, परब्रह्म मेरे अन्दर ही है। संसार में जिस परम सत्य स्वरूप परब्रह्म को हम बाहर ढूंढते हैं। वह हमारे अन्दर ही है। प्रत्येक जीव के अन्दर वह ब्रह्म है।
अतः अहम् ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) यह महावाक्य हमें अपने अन्दर के वास्तविक आत्मतत्व व परमात्मतत्व का बोध कराता है। लोकदृष्टि से जब यह बात कही जाए कि मैं ही ब्रह्म हूँ तो लोक में यह हास्यास्पद हो जाता है। एक जीव जब अपने आप को ब्रह्म कहने लगे तो संसार में वह मूढता व हास्य का पात्र माना जाता है। ऐंसी स्थिति में तो जो यह - अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य है। इसका उपदेश देना ही व्यर्थ हो जाएगा लेकिन नहीं।
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अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) वाक्य कोई सामान्य वाक्य नहीं है अपितु एक गूढ रहस्य व मनुष्य के जीवन का वास्तविक सत्य है। इस महावाक्य का उद्देश्य प्रत्येक जीव को उसकी वास्तविक पहचान कराना है।
जब जीव अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर लेता है तब वह अहं ब्रह्मास्मि की स्थिति में पहुँच जाता है क्योंकि अहम् ब्रह्मास्मि वाक्य में जो अहम् पद है। उसका अर्थ आत्मा है न कि शरीर। जब तक हम अपने शरीर के आन्तरिक सूक्ष्म शरीर को नहीं समझ पाते हैं तब तक हमें इस प्रकार की बातों में कोई संगति नहीं दिखती।
अतः अहम् ब्रह्मास्मि का वास्तविक अर्थ यही है कि हम अपनी अजर, अमर, अविनाशि, शुद्धस्वरूप, अन्तरात्मा को पहचानें और फिर अन्तरात्मा में विद्यमान उस परमात्मा परब्रह्म का साक्षात्कार करें।
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अहम् ब्रह्मास्मि मंत्र (अहम् ब्रह्मास्मि पूर्ण श्लोक)
अहम् ब्रह्मास्मि मंत्र बृहदारण्यक उपनिषद के प्रथम अध्याय के चतुर्थ काण्ड का 10 वां मंत्र है। यह पूरा मंत्र कुछ इस प्रकार है-
ब्रह्म वा इदमग्र आसीत्तदात्मानमेवावेद्- अहं ब्रह्मास्मि इति। तस्मात् सर्वम् अभवत् तद्यो यो देवानां प्रतिबुध्यत स एव तदभवत्तथर्षीनां तथा मनुष्याणां तद्धैतत्पश्यन्नृषिर्वामदेवः प्रतिपेदेsहं मनुरभव सूर्यश्चेति।।
इस प्रकार उपरोक्त अहम् ब्रह्मास्मि का पूर्ण मंत्र (श्लोक) है।
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1 Comments
बहुत ही उपयोगी जानकारी । बचपन से यह वाक्य सुनते आ रहा था, पर आज पता चला; यह वाक्य कहां से लिया गया है । बहुत बहुत धन्यवाद ।
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