प्यारे मित्रों, क्या आप जानते हैं- मनुस्मृति का आज भी पूरी दुनिया में कितना आदर किया जाता है। मनुस्मृति के इतने आदर व उपयोगिता होने के बावजूद भी आखिर क्यों अम्बेडकर ने मनुस्मृति ग्रंथ को जला दिया था? क्या आपको पता है- भारतीय संस्कृति का प्राण क्या है? क्या आप जानते हैं कि इस संसार के आदि पुरुष कौन थे? तो आइये, आप सभी का आपकी अपनी वेबसाइट में हार्दिक स्वागत है। प्यारे मित्रों, आज हम आप सभी के लिए एक खास रोचक विषय प्रस्तुत कर रहे हैं। आज का यह विषय विभिन्न संस्कृत परीक्षाओं के लिए तथा भारतीय प्राचीन इतिहास को समझने के लिए बेहद खास होने वाला है। जी हाँ। आज हम बात करने वाले हैं मनुस्मृति की। आखिर मनुस्मृति क्या है। क्या है मनुस्मृति का सच। मनुस्मृति किसने लिखी। आज हम मनुस्मृति का पूरा परिचय आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। तो आइये, ज्ञान को बढाइये।
इस लेख
में
- मनुस्मृति क्या है- महत्व
- मनुस्मृति के रचयिता
- मनुस्मृति में क्या लिखा है
- मनुस्मृति का रचनाकाल
- मनुस्मृति का इतिहास
- मनुस्मृति में कितने अध्याय हैं
- मनुस्मृति अध्याय 1
- मनुस्मृति अध्याय 2
- मनुस्मृति अध्याय 7
- मनुस्मृति की टीकाएँ
- मनुस्मृति के विवादित श्लोक
- मनुस्मृति के महत्वपूर्ण श्लोक
- मनुस्मृति में राजा के गुण
- MANUSMRITI IN HINDI PDF
प्यारे
मित्रों आज हम उपरोक्त सभी बिन्दुओं की सारगर्भित रूप से चर्चा करेंगे। आप सभी
जानते होंगे कि प्राचीन भारतीय परम्परा व इतिहास कितना अद्भुत रहा। इसके विषय में
आज भी भारत में नाना प्रकार के धर्मशास्त्र पुराण आदि प्रमाण हैं। धर्मशास्त्रों
की श्रेणी में ही सबसे श्रेष्ठ स्थान है- मनुस्मृति का। मनुस्मृति, जो कि प्राचीन
भारत का एक अद्भुत धर्मसम्बन्धित ग्रंथ है। ये वही मनुस्मृति है, जिसके बारे में
आपके मन में भी ये सारे प्रश्न आते रहते होंगे। प्रिय पाठकों, आज का यह विषय आपके
लिए बहुत ही उपयोगी होने वाला है अतः पूरे ध्यान एवं आनन्द के साथ पढिएगा। मनुस्मृति
के अनुसार दण्ड कितने प्रकार का है- यह प्रश्न IAS UPSC SANSKRIT PRE EXAM में पूछा गया था। ऐंसे ही बहुत सारे विषय
हैं, जिनकी आज हम चर्चा करने वाले हैं।
मनुस्मृति क्या है- महत्त्व
हिन्दू
धर्म ज्ञान के असीम भण्डार से सदैव प्रपूर्ण रहा है। हिन्दू धर्मशास्त्र आज भी
पूरी दुनिया में अपनी एक सर्वोच्च विशिष्ट पहचान बताता हैं। यूँ तो धर्मशास्त्र का
सीधा- सीधा मतलब होता है कि धर्म सम्बन्धित शास्त्र, लेकिन धर्मशास्त्र धर्म तक ही
सीमित न होकर के सामाजिक, नैतिक आदि विषयों का भी भरपूर बोध कराता है। मनुस्मृति,
जो कि एक अन्यतम धर्मशास्त्रीय ग्रंथ है। धर्मशास्त्र अर्थात् स्मृतिग्रंथ। वैंसे
तो हिन्दूधर्म में प्राचीन काल से ही धर्मशास्त्र अर्थात् स्मृतिग्रंथों की रचना
होती रही है, तथापि प्राचीनता एवं लोकप्रसिद्धि की दृष्टि से आज जो स्थान
मनुस्मृति का है वह किसी का भी नहीं। मनुस्मृति भारतीय संस्कृति का प्राण है।
विश्व में आज भी मनुस्मृति की गणना बहुत श्रेष्ठतम ग्रंथों में की जाती है। विश्व
के असंख्य विद्वान मनुस्मृति को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। अनेकों पाश्चात्य
विद्वानों ने तो मनुस्मृति की दृढ रूप से प्रंशसा की है।
मुख्य स्मृतिग्रंथ- |
अठारह (18) |
मनुस्मृति- |
प्राचीन स्मृतिग्रंथ |
रचयिता- |
स्वाम्भुव मनु |
बाइबल इन इण्डिया नामक पुस्तक में मनुस्मृति के विषय में कहा गया है कि-
मनुस्मृति
ही वह आधार शिला है जिसके आधार पर विभिन्न देशों, जैंसे- मिस्र, परसिया, ग्रेसियन
और रोमन कानूनी संहिताओं का निर्माण हुआ। यूरोप में आज भी मनु का प्रभाव देखा जा
सकता है। ऐंसे ही एक दूसरे विद्वान- एन्टॉनी रीड कहते हैं- बर्मा, थाइलैण्ड,
कम्बोडिया, जावाबाली आदि देशों में भारतीय मनुस्मृति का बहुत आदर किया जाता था।
मनुस्मृति किसने लिखी- रचयिता
मनुस्मृति
का रचनाकार कौन है। मनुस्मृति किसने लिखी। क्या स्वाम्भुव मनु ने मनुस्मृति लिखी।
इत्यादि मनुस्मृति की रचना को लेकर के आज भी विवादपरक प्रश्न समाज में देखने को
मिलते रहते हैं। आज हम यँहा मनुस्मृति की रचना किसने की इसकी विस्तृत रूप से चर्चा
करेंगे। मनुस्मृति की रचना को लेकर के विद्वानों ने अनेकानेक विचार प्रस्तुत किए।
किसी ने मनुस्मृति को मानवधर्मसूत्र से जोडा, तो वंही किसी ने मानव वैदिक शाखा से,
लेकिन कौन इस भारतीय प्राणभूत मनुस्मृति ग्रंथ का रचनाकार है। मनुस्मृति नाम से तो
ऐसा प्रतीत होता है कि मनु की स्मृति अर्थात् मनु नामक व्यक्ति के द्वारा लिखी
गयी। ये मनु कौन थे क्या ये ब्रह्मा जी के मानसपुत्र मनु हैं। क्या ये प्राचेतस
मनु हैं। यह भी विचारणीय है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार कुल 14 मनु बताए गये।
1.स्वायम्भुव मनु |
8.सावर्णि |
2.स्वारोचिष |
9.दक्षसावर्णि |
3.उत्तम |
10.ब्रह्मसावर्णि |
4.तामस |
11.धर्मसावर्णि |
5.रैवत मनु |
12.रूद्रसावर्णि |
6.चाक्षुष |
13.देवसावर्णि |
7.वैवस्वत |
14.इन्द्रसावर्णि |
उपरोक्त
चौदह मनुओं के बारें में कहा जाता है कि स्वायम्भुव मनु, जो ब्रह्मा जी के
मानसपुत्र कहे जाते हैं- मनुस्मृति उन्हीं की रचना है। कहा जाता है कि आगे चलकर 14
वें मनु- इन्द्रसावर्णि ने स्वायभुव के रचित मनुस्मृति को संशोधित किया। विद्वानों
का एक दूसरा वर्ग कहता है कि मनुस्मृति के रचनाकार वैवस्वत मनु हैं, जो कि सातवें
मनु हैं। इनसे पहले भी 6 मनु थे। इन वैवस्वत मनु के काल में ही भगवान विष्णु का
मत्स्यावतार भी हुआ था। इस प्रकार मनुस्मृति के रचनाकार स्वाम्भुव मनु को ही
प्रायः माना जाता है। हाँ यह हो सकता है कि मनुस्मृति समय समय पर 14 मनुओं के
द्वारा परिष्कृत होती रही हो। स्वायम्भुव मनु के समय की यदि बात करें तो हिन्दू
धर्मशास्त्रों के अनुसार 9,000 ईसा पूर्व के आसपास स्वायम्भुव मनु का समय बताया
गया है। इस दृष्टि से स्वाम्भुव मनु का समय आज से लगभग 10,000 साल पहले का है। इस
प्रकार मनुस्मृति की प्राचीनता भी दृष्टिगोचर होती है।
मनुस्मृति में क्या लिखा है
मनुस्मृति
एक धर्मशास्त्रीय ग्रंथ है यह सर्वविदित ही है। इस प्रकार धर्मशास्त्रीय ग्रंथ
होने के नाते मनुस्मृति में धर्मसम्बन्धित विषयों का अत्यधिक वर्णन किया गया है।
चार वर्णों का क्या धर्म है। चार आश्रमों का क्या धर्म है। स्त्रियों का धर्म क्या
है इत्यादि विषयों को मनुस्मृति में बहुत ही अच्छे ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।
मनुस्मृति में शूद्रों के बारें में, राजा के बारें में, शासन के बारे में ,
महिलाओं के बारें में और भी विभिन्न विषयों के बारे में गहन चिन्तन किया गया है।
मनुस्मृति में क्या लिखा है- यंहा कुछ अध्यायों का वर्ण्यविषय बताया गया है।
मनुस्मृति अध्याय |
वर्ण्य
विषय |
अध्याय- 1 |
सृष्टि उत्पत्ति
वर्णन |
अध्याय- 2 |
संस्कार, व्रतादि
वर्णन |
अध्याय- 3 |
श्राद्धकल्प वर्णन |
अध्याय- 4 |
वृत्तिलक्षण आदि |
अध्याय- 5 |
भक्ष्याभक्ष्य
वर्णन |
अध्याय- 6 |
चार आश्रमों का
वर्णन |
अध्याय- 7 |
राजधर्म वर्णन |
अध्याय- 8 |
शासन |
अध्याय- 9 |
स्त्रीपुरुषधर्म |
अध्याय- 10 |
चतुर्वर्ण धर्म |
अध्याय- 11 |
प्रायश्चित वर्णन |
अध्याय- 12 |
मोक्षप्राप्ति |
सम्पूर्ण
मनुस्मृति में विभिन्न प्रकार की ऐंसी महत्वपूर्ण नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि
विविध प्रकार की बातें हैं, जो कि आज भी सारी दुनिया में अपनायी जाती हैं।
शिक्षाग्रहण करने का बात भी सबसे पहले इसी मनुस्मृति ग्रंथ में की गयी। राजा के
धर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, प्रायश्चित कर्म आदि विविध प्रासंगिक एवं उपयोगी
विषयों का उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है। हिन्दू धर्म में जन्म के आधार पर
जाति एवं वर्ण की व्यवस्था भी सबसे पहले मनुस्मृति में ही की गयी थी।
मनुस्मृति का रचनाकाल व इतिहास
वैंसे
तो मनुस्मृति की रचना अत्यन्त ही प्राचीन है, यह सर्वथा सत्य है। तथापि विद्वानों
के अलग-अलग वर्ग अपने अनुसंधान से भौतिक प्रमाणों के आधार पर किसी भी ग्रंथ अथवा
लेखक के कालनिर्धारण का प्रयास करते ही रहे हैं। मनुस्मृति के रचनाकाल को लेकर भी
विद्वान कभी एकमत नही हुए। इसका कारण यही है कि मनुस्मृति अत्यन्त प्राचीन है, अतः
विद्वानों को इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिल पाता जिसके आधार पर यहा कहा जा सके कि
मनुस्मृति की रचना इस निश्चित कालखण्ड में हुई। मनुस्मृति के रचनाकाल को जानने के
लिए विद्वानों ने नाना प्रकार के प्रमाण दिए हैं, जैंसे कि- मृच्छकटिक में मनु का
सन्दर्भ। वाल्मीकि रामायण में मनु के वचन उद्धृत किए गये। इत्यादि प्रमाणों के
आधार पर विद्वानों का वर्ग मनुस्मृति के काल को अलग-अलग रूप में परिभाषित करते
हैं। कतिपय विद्वानों का मानना है कि मनुस्मृति 10,000 ईसा पूर्व लिखी गयी।
विद्वानों का एक वर्ग तो ऐसा भी कहता है कि मनुस्मृति की रचना ईसापूर्व
चतुर्थशताब्दी से पहले नहीं मानी जा सकती है। इस प्रकार मनुस्मृति के काल को लेकर
सर्वदा विवाद रहा है।
- मनुस्मृति का रचनाकाल- 200 ईसापूर्व
- मनुस्मृति का प्रथम अनुवाद- 1794 ईस्वी
- प्रथम अनुवादकर्ता- विलियम जोंस
प्यारे
मित्रों, मनुस्मृति ग्रंथ से वैंसे तो संस्कृत की सभी परीक्षाओं में बहुत प्रश्न
पूछे जाते हैं, परन्तु बात करें यूजीसीनेट संस्कृत की तो हर साल मनुस्मृति से कई
प्रश्न पूछे जाते हैं, जैंसे कि कुछ प्रश्न आप यँहा भी देख सकते हैं- मनुना
क्रोधजानि व्यसनानि कियन्ति उक्तानि – UGC NET SANSKRIT CODE 25 । मनुस्मृति के अनुसार पित्रों की रात्रि
होती है- UGC
NET SANSKRIT CODE 25 में
पूछा गया प्रश्न। प्यारे मित्रों, आज हम इन सभी विषयों की विस्तृत रूप से चर्चा कर
रहें हैं। पढते रहिए।
मनुस्मृति का प्रकाशन
भारतीय अधिकांश ग्रंथो को प्रथमतया प्रकाशन करने में ब्रिटिश साम्राज्य का बहुत बडा हाथ रहा है। मनुस्मृति के साथ भी कुछ ऐंसा ही है। 1776 ईस्वी के समय ब्रिटिशों ने विभिन्न भारतीय संस्कृत ग्रंथो का अनुवाद किया जिनमें से एक मनुस्मृति भी थी। तत्कालीन समय में ब्रिटिश सरकार ने अपने कानून को बनाने के लिए इस मनुस्मृति का अंग्रेजी अनुवाद किया। भारत में यदि मनुस्मृति के प्रकाशन की बात करें तो 1813 ईस्वी में सर्वप्रथम कलकत्ता से मनुस्मृति का मुद्रण किया गया।
मनुस्मृति में कितने अध्याय हैं- विभाजन
मनुस्मृति
में क्या लिखा गया है। इसका वर्णन हम अध्याय अनुसार ऊपर कर चुके हैं। अब यह
जिज्ञासा होती है कि मनुस्मृति में कुल कितने अध्याय हैं। अथवा मनुस्मृति का
वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है। तो आइये, जानते हैं, प्यारे मित्रों, मनुस्मृति
नामक ग्रंथ में कुल 12 अध्याय हैं। जी हाँ यह ग्रंथ बारह अध्यायों में विभक्त है
जिसमें कि 2684 श्लोक हैं। श्लोक के विषय
में कुछ विद्वान 2964 भी बताते हैं। यह विवाद प्रायः सर्वत्र ही देखने को मिलता
रहता है। यूँ तो मनुस्मृति का हर एक अध्याय विशेष प्रकार से अत्यन्त पठनीय तथा
अद्भुत है तथापि मनुस्मृति के कुछ अध्याय- जैंसे कि प्रथम अध्याय (सृष्टिवर्णन),
द्वितीय अध्याय (संस्कारवर्णन), सप्तम अध्याय (राजधर्मवर्णन), नवम अध्याय
(स्त्रीपुरुषधर्मवर्णन) के कारण लोक में अत्यन्त प्रासंगिक भूमिका रखते हैं। वैंसे
मनुस्मृति का प्रत्येक अध्याय समाज के लिए आज भी अत्यन्त उपयोगी है। अतः हर एक
व्यक्ति को मनुस्मृति के बारें में जरूर जानना चाहिए। यदि आप हिन्दी अनुवाद सहित
मनुस्मृति की पुस्तक खऱीदना चाहते हैं, अथवा मनुस्मृति PDF BOOK डाउनलोड करना चाहते हैं, तो उसका लिंक भी
इस लेख की नीचे आपको पढते- पढते मिल जाएगा।
मनुस्मृति लेखक |
स्वायम्भुव मनु |
विभाजन |
अध्यायों में |
कुल अध्याय |
12 बारह |
कुल श्लोक |
2964 |
मनुस्मृति अध्याय 1
मनुस्मृति
का पहला अध्याय- जिसमें कि सृष्टि रचना के बारें में बहुत ही अच्छे ढंग से वर्णन
किया गया है। इस जगत की उत्पत्ति कैंसे हुई, धर्म की उत्पत्ति कैंसे हुई इत्यादि
बातें अत्यन्त सरल तरीके से मनुस्मृति के पहले अध्याय में वर्णित हैं। इस प्रथम
अध्याय में सबसे पहले मनु के साथ में ऋषियों का प्रसंग है, जो कि इस प्रकार है-
मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य
महर्षयः
प्रतिपूज्य
यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन्।। 1।।
इस
प्रथम श्लोक में ही साक्षात् ऋषिमुनि मनु से प्रश्न करने लगते हैं।
मनुमेकाग्रमासीनम्- अर्थात् मनु महाराज एकाग्रचित्त बैठे हुए थे, उसी समय अभिगम्य
महर्षयः- वंहा अनेक ऋषि मुनि आये एवं प्रतिपूज्य यथान्यायम् – ऋषियों ने मनु का
आदर सत्कार किया और ये प्रश्न पूछने लगे। ऋषि मुनि कहते हैं कि हे भगवन्, सभी
वर्णों के धर्म को हमें बतायें। हे स्वयम्भुव, अनादि वेदशास्त्र में जो भी वर्णन
किया गया है, उसको केवल आप ही जानते हैं। अतः हमें कृपापूर्वक बताने का कष्ट करें।
यंहा ध्यातव्य बात यह है कि ऋषियों ने मनु को स्वयम्भुव का सम्बोधन भी किया है,
जिससे कि यह स्पष्ट होता है कि मनुस्मृति के प्रवक्ता स्वायम्भुव मनु ही थे।
मनुस्मृति
के पहले अध्याय में किन-किन विषयों का
उल्लेख किया गया है, यह हमने सारांशरूप में नीचे दिया है-
मनुस्मृति प्रथम अध्याय |
महर्षियों का मनु के पास आना मनु का महर्षियों को उत्तर देना |
जगत् उत्पत्ति विषय, ईश्वर, काल, ब्रह्म उत्पत्ति, समस्त सृष्टि के तत्वों की उत्पत्ति, ब्रह्मा से
स्त्रीपुरुषोत्पत्ति मनु उत्पत्ति आदि |
धर्मोत्पत्ति विषय, सदाचार, श्रुति, स्मृति आदि परिचय |
मनुस्मृति
के प्रथम अध्याय में क्या क्या विषय बताए गये हैं यह आप ऊपर तालिका में देख सकते
हैं। इसी प्रकार परीक्षा दृष्टि से मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में ध्यातव्य बातें-
मनुस्मृति
के प्रथम अध्याय में-
ब्राह्मण,
क्षत्रियादि चारवर्णों के कर्म बताए गये हैं।
दस
प्रजापतियों के नाम बताए गये हैं- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु,
प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु तथा नारद।
मनुस्मृति
के प्रथम अध्याय में चार प्रकार के शरीरों का उल्लेख आया है, जो कि परीक्षा दृष्टि
से ध्यातव्य है।
- 1. जरायुज- पशु, मृग, राक्षसादि शरीरधारी।
- 2. अण्डज- पक्षी, सर्प आदि अण्डे देने वाले प्राणी।
- 3. स्वेदज- पसीने से उत्पन्न प्राणी।
- 4. उद्भिज- सभी स्थावर प्राणी, ओषधी आदि।
मनुस्मृति
के प्रथम अध्याय में कालपरिमाण के बारे में भी बताया गया है, जो कि निम्नप्रकार से
है-
18 पलक - |
1 काष्ठा |
30 काष्ठा- |
1 कला |
30 कला- |
1 मुहूर्त |
30 मुहूर्त- |
1 दिनरात |
मनुष्यों का 1 मास- |
पित्रों का दिनरात |
कृष्णपक्ष- |
पित्रों का दिन |
शुक्लपक्ष- |
पित्रों की रात्रि |
मनुष्यों का 1 वर्ष- |
देवताओं का रात्रिदिन |
देवताओं का दिन- |
उत्तरायण |
देवताओं की रात- |
दक्षिणायन |
इसके
अतिरिक्त भी चार युगों का परिमाण, मान आदि बताया गया है। मनुस्मृति के पहले अध्याय
से इस प्रकार के बहुत प्रश्न परीक्षाओं में बार-बार पूछे गये हैं।
मनुस्मृति अध्याय 2
मनुस्मृति
के द्वितीय अध्याय में विशेषरूप से धर्म की चर्चा की गयी है। धर्म का क्या लक्षण
है, सदाचार क्या है, संस्कारों का वर्णन, भिक्षा कैंसे मांगनी चाहिए आदि का वर्णन
मनुस्मृति के दूसरे अध्याय में मिलता है। यंहा सारगर्भित रूप से नीचे तालिका में
दूसरे अध्याय का वर्ण्यविषय बताया गया है।
मनुस्मृति
द्वितीय अध्याय |
संस्कारों
का वर्णन, निर्देश, जातकर्म आदि संस्कारों का विधान,
मेखलाविधि। |
दण्ड
का स्वरूप, भिक्षा का विधान, आचन विधि आदि |
ब्रह्मचारियों
के कर्तव्य, वेद- अध्ययन विधि, ओम् तथा गायत्री की उत्पत्ति |
ग्यारह
इन्द्रियों की गणना, स्वाध्याय फल, संध्योपसनना का फल आदि |
परीक्षादृष्टि से इसके अतिरिक्त मनुस्मृति के दूसरे अध्याय में-
ब्रह्मर्षियों
के चार निवास स्थान बताये गये हैं जो कि- कुरुक्षेत्र (हरियाणा) , मत्स्यदेश
(राजस्थान), पांचाल (पंजाब), शूरसेन (मथुरा) हैं।
इसके
अतिरिक्त मनुस्मृति के दूसरे अध्याय में भिक्षा मांगने की पद्धति भी बतायी गयी है।
ब्राह्मण जब भिक्षा मांगे तो उसे क्या कहना चाहिए, क्षत्रिय जब भिक्षा मांगे तो
उसे क्या कहना चाहिए, वैश्य जब भिक्षा मांगे तो उसे क्या कहना चाहिए। ये भी बताया
गया है। UGC NET
SANSKRIT CODE 25 के लिए
यह बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
भिक्षा
मांगने की पद्धति- मनुस्मृति दूसरा अध्याय
ब्राह्मण- |
भवती भिक्षां देहि। |
क्षत्रिय- |
भिक्षां भवती देहि। |
वैश्य- |
भिक्षां देहि भवती। |
प्यारे
मित्रों, उपरोक्त सभी बातें संस्कृत परीक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है, साथ ही ज्ञान
के लिए भी आवश्यक हैं। अतः ध्यान से पढें एवं आपकी अपनी इस वेबसाइट से हमेशा जुडे
रहे। यदि आपको यह मनुस्मृति का लेख पसंद आये तो अपने मित्रों के साथ शेयर जरूर
करें। धन्यवाद
मनुस्मृति अध्याय 7
मनुस्मृति
के सातवें अध्याय में मुख्यरूप से राजा सम्बन्धित विषयों का उल्लेख किया गया है। सारांश
रूप में सप्तम अध्याय की विषयवस्तु नीचे तालिका में देखें-
मनुस्मृति सप्तम अध्याय |
राजधर्म विषय, राजा की नियुक्ति,
व्यसनों की गणना, दूत के कार्य, राजनीतिनिष्कर्ष |
सैनिकों तथा शस्त्रों का निरीक्षण,
राजकार्यचिन्तन |
यदि
परीक्षादृष्टि से और गहराई में देखें तो मनुस्मृति के सप्तम अध्याय में सबसे पहले
इन्द्रादि आठ दिक्पालों का वर्णन आया है, और कहा गया है कि इन दिक्पालों के सहयोग
से ईश्वर ने राजा को बनाया है। इसके बाद काम, क्रोध आदि से उत्पन्न दोषों की चर्चा
की गयी है।
मनुस्मृति
सप्तम अध्याय- काम से उत्पन्न दोष- 10
1-
मृगया, 2- अक्ष (जुआ खेलना), 3- दिवास्वप्न (दिन में सोना), 4- परिवाद (दूसरों पर
दोष देना), 5- स्त्रियः (स्त्री में आसक्ति), 6- मद- मद्यमान, 7- तौर्यात्रिक 3
(नाच-गाना व बजाना), 10- वृथाट्या (फालतू घूमना)
इसके
अतिरिक्त मनुस्मृति के सातवें अध्याय में षट्दुर्गों का उल्लेख किया गया है,
जिनमें से पर्वतदुर्ग सबसे श्रेष्ठ है। राज्य के सात अंग, राजा के 6 गुण, दण्ड के
तीन प्रकार, व्यूह के 6 प्रकारों का उल्लेख किया गया है।
मनुस्मृति
सप्तम अध्याय के अनुसार दण्ड तीन प्रकार का होता है।
- श्यामवर्ण
- लोहिताक्ष
- पापहा
मनुस्मृति
के सप्तम अध्याय में राजा के पाँच गुप्तचर बताए गये हैं, जो कि कौटिल्य
अर्थशास्त्र में भी मिलते हैं- कौटिल्य अर्थशास्त्र का पूरा परिचय पढने के लिए
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मनुस्मृति
के अनुसार राजा के 5 गुप्तचर
1- कापटिक |
4- वैदेहक |
2- उदासीन |
5- तापस |
3- गृहपति |
|
इस
प्रकार मनुस्मृति के सप्तम अध्याय का परिचय है। यदि आप भी विभिन्न प्रतियोगी
परीक्षाओं एवं राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा UGC NET SANSKRIT में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो
मनुस्मृति का आज का यह विषय आप सभी के लिए बहुत ही उपयोगी है। मनुस्मृति सप्तम अध्याय पीडीएफ- click here अन्य यूजीसीनेट
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मनुस्मृति की टीकाएँ
आज भी
यह बात मनुस्मृति की प्राचीनता एवं लोकप्रियता को दर्शाती है कि समय के साथ-साथ
वर्तमान में भी मनुस्मृति पर नानाप्रकार की टीकाएँ, अनुवाद, भाष्य आदि निरन्तर लिखे
जा रहे हैं। मनुस्मृति के रचनाकाल से लेकर ही उत्तरोत्तर विद्वानों ने मनुस्मृति
पर अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए अपनी अपनी टीकाएँ, ग्रंथ, भाष्य, अनुवाद आदि
विभिन्न प्रकार की मनुस्मृति आधारित रचनाएँ की। प्राचीनकाल की बात करें, तो
बहुतेरे ऐंसे विद्वान लेखक हुए जिन्होंने मनुस्मृति पर अपने टीकाग्रंथ आदि लिखकर
साहित्य जगत में अलौकिक छवि प्राप्त की। जैंसे कि मनुस्मृति पर कुल्लूक भट्ट
द्वारा विरचित मन्वर्थमुक्तावली, मेधातिथि द्वारा कृत भाष्य आदि आज भी मनुस्मृति
के व्याख्यानपरक प्राणभूत अंग बने हुए हैं। यँहा मनुस्मृति पर लिखी महत्वपूर्ण
टीकाओं तथा टीकाकारों का नाम दिया जा रहा है, जो कि विभिन्न परीक्षाओं की दृष्टि
से जैंसे कि- UGC
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मनुस्मृति
की टीकाओं व टीकाकारों का नाम
टीका का नाम |
टीकाकार का नाम |
मन्वर्थमुक्तावली |
कुल्लूक भट्ट |
मनुभाष्यटीका |
मेधातिथि |
मन्वर्थविवृत्तिटीका |
सर्वज्ञनारायण |
मन्वर्थचन्द्रिका |
राघवानन्द |
नन्दिनी |
नन्दन |
मन्वाशयानसारिणी |
गोविन्दराज |
उपरोक्त
टीकाएँ एवं टीकाकार प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
विशेषरूप से UGC
NET SANSKRIT CODE 25 के
पाठ्यक्रम के अनुसार दशमयूनिट के लिए मनुस्मृति का यह लेख आप सभी के लिए अत्यन्त
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मनुस्मृति के विवादित श्लोक
पिता
रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।
रक्षन्ति
स्थविरे पुत्राः न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति।। (नौवां अध्याय- 3 श्लोक)
अर्थात्- मनु का कहना है कि स्त्री कभी स्वतन्त्र नही हो सकती। जो कि मनुस्मृति के प्रसंग से वर्तमान में विवादित विषय के रूप में जाना जाता है।
पति
पत्नी को छोड सकता है, क्रय कर सकता है, लेकिन स्त्री ऐंसा नहीं कर सकती है।– 9-45
ढोल
गंवार शूद्र पशु नारी , ये सब ताडन के अधिकारी अर्थात् नारी, शूद्र व गंवार को ढोल आदि के समान ताडन अर्थात् (डाँटना, हड़काना, ताड़ना (जिस प्रकार छोटे बच्चे को ताड़ा जाता है) इत्यादि) की श्रेणी में रखा गया है। तुलसीदास ने भी इस बात को अपने रामचरितमानस में लिखा है। (मनुस्मृति 8-299)
मैं एक
लेखक के तौर पर उपरोक्त विवादित बातों को अधिक न कहते हुए इस विवादित विषय को
दीर्घ नही करुँगा, चूँकि मनुस्मृति में लिखी विवादित बातें, स्त्रीविषयक बातें,
जातिवाद आदि से लोगों ने गलत अर्थ समझ लिया। ऐंसा भी हो सकता है कि इसके पीछे
जातिवाद को लेकर कोई पक्षपात है या फिर मनुस्मृति के साथ ब्रिटिशलोगों ने छेडछाड
करके उसका वास्तविक स्वरूप बिगाडने की कोशिश की हो। स्त्री इस जगत् की आदिशक्ति है और कहा भी गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवताः। नारी का सम्मान हिन्दूधर्म में अन्यत्र भी वर्णित है। और मेरा
मानना है स्त्री हो पुरुष दोनों का अपना स्थान है। किसी की इस प्रकार निन्दा करना
सही नहीं है। ऐसा मेरा निजीविचार है। मनुस्मृति के विवाद के बारें में आपकी क्या राय है आप भी
अपना निजी विचार नीचे कमेंट करके निस्सन्देह रख सकते हैं। प्यारे मित्रों, इस
प्रकार मनुस्मृति में विवादित बातें ही आज समाज में मनुस्मृति के विरोध का कारण
बनती हैं और शायद इन सभी बातों को देखकर अम्बेडकर साहब ने मनुस्मृति को जलाया
होगा, और इसी वजह से आज मनुस्मृति का विरोध होता होगा। खेर, यहां हमारा उद्देश्य
आप तक ज्ञान पहुँचाना है ताकि आप भी मनुस्मृति के बारें में अच्छे ढंग से समझ
सकें। यहाँ विरोध अथवा पक्षपात का कोई प्रयोजन नहीं है। आप सभी के लिए विभिन्न
प्रतियोगि परीक्षाओं हेतु तथा ज्ञान की दृष्टि से मनुस्मृति को समझना अत्यन्त
आवश्यक है।
मनुस्मृति के महत्वपूर्ण श्लोक
वैंसे
तो मनुस्मृति का हर एक श्लोक बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। चाहे फिर वो किसी
परीक्षादृष्टि से हो या फिर सामाजिक ज्ञान की दृष्टि से। मनुस्मृति का एक- एक
श्लोक आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पूर्णरूपेण घटित होता है। यंहा हम बात
करेंगे कुछ खास चुने हुए श्लोक- जो कि शायद आपने भी समाज में किसी व्यक्ति के मुख
से जरूर सुने हों। ये श्लोक परीक्षादृष्टि से भी अति उपयोगी हैं।
जन्मना
जायते शूद्रः कर्मणा द्विज उच्यते
अर्थ-
मनु का कहना है कि जन्म से व्यक्ति शूद्र के समान होता है, लेकिन यदि वह श्रेष्ट
कर्म करे तो अपने श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा ब्राह्मण भी बन सकता है।
धृति
क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या
सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थ-
मनु ने अपनी मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण कहे हैं- जो कि उपरोक्त श्लोक में
बताए गये हैं।
नोच्छिष्ठं
कस्यचिद् दद्यान्नाद्याचैव तथान्तरा।
अर्थात्
किसी को कभी अपना जूठा नहीं देना चाहिए। यह बात तो शायद आपने अक्सर सुनी ही होगी,
लेकिन ये ध्यातव्य है कि यह लोकप्रसिद्ध बात मनुस्मृति से ही ली गयी है।
मनुस्मृति में राजा के गुण तथा सप्तांग राज्य सिद्धान्त
मनुस्मृति
में राजा के विषय में उसका धर्म, उसके कर्तव्य, उसके गुण, उसकी राज्यनीति आदि
विभिन्न बातों की गहन चर्चा मिलती है। राजा के बारें में मनुस्मृति कहती है कि-
- राजा ईश्वर से उत्पन्न होता है।
- राजा को हमेशा सर्वगुण सम्पन्न स्त्री से शादी करनी चाहिए।
- राजा को खूब दान करना चाहिए।
- प्रजा के लिए राजा पिता-पुत्रवत् होना चाहिए।
- राजा को हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
- राजा को सदा मीठा बोलना चाहिए आदि।
इस
प्रकार मनुस्मृति के अध्याय सात में राजा एवं राजसम्बन्धित सभी कार्यों की विस्तृत
चर्चा की गयी है। मनुस्मृति के नवम अध्याय में राज्य के सात अंगो का उल्लेख किया
गया है। ये सात अंग निम्न प्रकार से हैं-
मनुस्मृति
के अनुसार राज्य के सात अंग
1. राजा |
5. कोष (खजाना) |
2. मंत्री |
6. दण्ड (सजा) |
3. पुर (दुर्ग) |
7. मित्र |
4. देश |
|
मनु का
मानना है कि इन राज्य के लिए इन सात अंग का होना अति आवश्यक है। यदि किसी भी
अवस्था में राज्य में इन सात अंगो में से किसी एक अंग की भी कमी हो जाए तो वह
राज्य कभी भी अच्छे ढंग से नहीं चल सकता, न ही वंहा की प्रजा खुश रह सकती है। इस
प्रकार मनुस्मृति की ये सभी बातें आज भी एक राजा हो या देश का राष्ट्रपति आदि। इन
सबके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती हैं। राजा को युद्ध करते समय किन बातों का
ध्यान रखना चाहिए, प्रजा को किस प्रकार खुश रखना है आदि बातों का उपदेश दिया गया
है। मनुस्मृति के व्हाटसप् ग्रुप से जुडने के लिए यंहा क्लिक करें- CLICK HERE
- राजा को युद्ध में डरना नहीं चाहिए।
- आपातकाल में राजा प्रजा से कर ले सकता है।
- राजा का धर्म है कि वह शत्रु को मार डाले।
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मनुस्मृति से सम्बन्धित अक्सर पूछे गये सवाल-
FAQ
- मनुस्मृति के लेखक कौन हैं?
मनुस्मृति के लेखक स्वायम्भुव मनु हैं। ये स्वायम्भुव मनु सृष्टि के आदि पुरुष थे। इनकी पत्नी शतरूपा थी। इन दोनों के संसर्ग से सृष्टि का क्रम आगे बड़ा।
- मनुस्मृति में क्या लिखा है?
मनुस्मृति नामक स्मृतिग्रंथ सभी स्मृतियों में अत्यन्त श्रेष्ठ एवं प्रसिद्ध है। स्मृति का अर्थ होता है- धर्मशास्त्र। मनुस्मृति में धर्म सम्बंधित बातें, धर्म क्या है? धर्म का क्या लक्षण है? इत्यादि विषयों के बारे में लिखा है। मनुस्मृति में लिखा है- गृहस्थ का क्या धर्म है? चार वर्ण कौन-कौन से हैं? आदि विभिन्न नैतिक बातों का उल्लेख मनुस्मृति में मिलता है।
- मनुस्मृति कब लिखी गयी?
मनुस्मृति प्राचीनतम स्मृतियों में से एक प्रसिद्ध स्मृति है। माना जाता है कि मनुस्मृति 10,000 ईसा पूर्व के आसपास लिखी गयी। यानि कि आज से लगभग 12,000 साल पहले मनुस्मृति लिखी गयी। हिन्दू धर्म में सभी स्मृति ग्रंथो में से एक अन्यतम स्मृति ग्रंथ है- मनुस्मृति। मनुस्मृति का इतिहास बहुत पुराना है। आज से लगभग 12,000 साल पहले मनुस्मृति की रचना हुई थी। 1794 में मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।
- स्मृतिग्रंथ कितने हैं?
हिन्दू धर्म में स्मृति ग्रंथों की संख्या बहुत अधिक है, तथापि 18 पुराण, 18 स्मृतियाँ, महाभारत व रामायण हिन्दू धर्म में अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। मुख्य रूप से स्मृति ग्रंथ- 18 हैं।
- मनुस्मृति को किसने जलाया?
मनुस्मृति को डाॅ. अम्बेडकर ने जलाया। 25 दिसम्बर 1927 को महाराष्ट्र में डाॅ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने सभी जनसमूह के सामने मनुस्मृति को जलाने का कार्यक्रम किया था। इसी कारण यह दिन मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
- मनु किसका पुत्र था?
मनु स्वायम्भुव थे। अर्थात् मनु ब्रह्माजी के मानसपुत्र माने जाते हैं। मानस पुत्र अर्थात् ब्रह्मा जी ने मनु को अपनी योग विद्या से उत्पन्न किया। मनु ही इस धरती पर सबसे पहले पुरुष थे एवं मनु की प्रेयसी शतरूपा इस सृष्टि में पहली स्त्री थी। मनु की संतान होने के कारण ही हम सभी मानव कहलाए।
- मनु और शतरूपा के पुत्र का क्या नाम था?
पुराणों में वर्णन आता है कि शतरूपा ने मनु को पाने के लिए कठोर तपस्या की। परिणामस्वरूप मनु को शतरूपा ने पतिरूप में प्राप्त किया। इन दोनों के संसर्ग से 'वीर' नाम का पुत्र हुआ अर्थात् मनु और शतरूपा के पुत्र का नाम- वीर था।
- मनुस्मृति में कितने संस्कार हैं?
संस्कार मानव को पवित्र करने वाला एक पवित्र अनुष्ठान है, जो कि जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। जैंसे कि- व्यक्ति के जन्म काल के समय गर्भावस्था में गर्भाधान संस्कार आदि। मनुस्मृति में कुल 16 संस्कार बताए गये हैं। मनुस्मृति की अपेक्षा अन्य धर्मशास्त्र ग्रंथों में संस्कार की संख्या में परिवर्तन देखने को मिलता है। गौतमधर्मसूत्र के अनुसार कुल- 40 संस्कार होते हैं। महाभारत के अनुसार भी कुल- 13 संस्कार माने गये हैं।
- मनुस्मृति में शूद्रों के बारे में क्या लिखा है?
मनुस्मृति में शूद्रों के बारें में लिखा है कि शूद्र एक उत्तम एवं पवित्र व्यक्ति होता है। अर्थात् शूद्र से घृणा नहीं करनी चाहिए। मनुस्मृति में शूद्रों के विषय में कहा है कि शूद्र को अन्य दो जातियों (ब्राह्मण-क्षत्रिय) की सेवा करनी चाहिए।
- मनुस्मृति में चाण्डालों के क्या-क्या कर्तव्य बताए गये?
मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्तव्य को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें लिखी हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।
• चाण्डालों को रात में गावं व नगर में नहीं चलना चाहिए।
• चाण्डालों को गांव से बाहर रहना चाहिए।
• चाण्डालों को मृत लोगों के वस्त्र पहनने चाहिए।
• चाण्डालों को लोहे के आभूषण पहनने चाहिए।
- क्या मनु ब्राह्मण थे?
नहीं। मनु एक महर्षि थे। ब्रह्मा जी के साक्षात् पुत्र नहीं थे बल्कि मानस पुत्र थे। अतः मनु ब्राह्मण नहीं थे।
- मनुस्मृति में जल को क्या कहा जाता है?
मनुस्मृति में जल के लिए नार शब्द का प्रयोग किया गया है, अर्थात् मनुस्मृति में जल को नार कहा जाता है।
- मनुस्मृति में कितने प्रकार के विवाह का उल्लेख किया गया है?
मनुस्मृति में कुल 8 प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है। मनुस्मृति के अनुसार ये 8 विवाह निम्न हैं।
1- ब्राह्म विवाह 2- दैव विवाह 3- आर्ष विवाह 4- प्राजापत्य विवाह 5- असुर विवाह 6- गन्धर्व विवाह 7- राक्षस विवाह 8- पैशाच विवाह।
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मनुस्मृति निष्कर्ष
प्रिय पाठकमित्रों, आज के इस लेख में हमने भारतीय धर्मशास्त्र ग्रंथों में से अन्यतम मनुस्मृति नामक स्मृतिग्रंथ की विस्तृत चर्चा की। इस लेख के माध्यम से हमारा मुख्य उद्देश्य- आप तक मनुस्मृति की विस्तृत जानकारी प्रदान करना था, जो कि विभिन्न संस्कृत प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। जैंसे कि- UG C NET SANSKRIT, UPSC SANSKRIT , DSSSB SANSKRIT, TGT PGT SANSKRIT, B.ED SANSKRIT ENTRANCE, PHD SANSKRIT ENTRANCE । प्यारे मित्रों, यदि आप भी संस्कृत सम्बद्ध किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो आप अपनी तैयारी को और अधिक बेहतर बनाने के लिए हमारी इस वेबसाइट से विभिन्न संस्कृत परीक्षाओं हेतु पाठ्यसामग्री नोट्स, पुराने प्रश्नपत्र, मॉक टेस्ट आदि आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप UGC NET SANSKRIT CODE 25 अथवा UGC NET FIRST PAPER की पाठ्यसामग्री, सिलेबस, नोट्स, प्रश्नपत्र आदि पढना एवं डाउनलोड करना चाहते हैं, तो आप नीचे लिंक पर क्लिक कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि आज के इस मनुस्मृति लेख से आप सभी का ज्ञान बढा होगा। धन्यवादः।।
4 Comments
बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक
ReplyDeleteमनुस्मृतिः मानवधर्मसंहितायां प्रमुखः कश्चन ग्रन्थः । अस्य मानवधर्मेतिहासे उच्चकोटिकं स्थानमस्ति । धर्मस्य व्यवस्थायै अस्माभिः अस्य अध्ययनं करणीयमेव ।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी । कम समय में मनुस्मृति की पूरी जानकारी ।
ReplyDeleteमनुस्मृति कौन कौन सी टीकाएं अभी प्राप्त हैं ?
ReplyDeleteआपको यह लेख (पोस्ट) कैंसा लगा? हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएँ। SanskritExam. Com वेबसाइट शीघ्र ही आपके कमेंट का जवाब देगी। ❤