मित्रों, आप सभी का आपकी अपनी संस्कृत एग्जाम वेबसाइट में हार्दिक स्वागित है। प्यारे मित्रों, जैंसे कि आप सभी जानते होंगे कि आपकी यह वेबसाइट संस्कृत की विभिन्न परीक्षाओं हेतु समर्पित है
तथा संस्कृत की विभिन्न जानकारी समय- समय पर यहाँ हम प्रदान करते रहते हैं। मित्रों, वर्तमान में हम उसी क्रम में UGC NET Sanskrit Preparation के अन्तर्गत यूजीसी नेट संस्कृत तीसरी यूनिट में दर्शनशास्त्र का सामान्य परिचय,
इस पाठ्यक्रम में प्रमाणमीमांसा, तत्त्वमीमांसा की चर्चा कर चुके हैं। आज के इस लेख के माध्यम से हम UGC NET Sanskrit तीसरी यूनिट के अन्तर्गत- आचारमीमांसा की चर्चा करेंगे।
- आचारमीमांसा क्या है?
- मूल्यमीमांसा क्या है?
- अनात्मवादी कौन है?
- UGC NET SANSKRIT में तीसरी यूनिट
- भारतीय दर्शनों में आचारमीमांसा?
- आचारमीमांसा शब्द से क्या तात्पर्य है?
मित्रों, उपरोक्त बहुत सारे प्रश्न आपके मन में भी जरूर होंगे लेकिन शायद ही आपके पास इन सभी प्रश्नों का जवाब हो। प्यारे मित्रों, आज हम इन सभी प्रश्नों की विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे।
जैंसे कि आप सभी जानते होंगे कि इससे पहले हम UGC NET SANSKRIT SYLLABUS के पाठ्यक्रमानुसार तीसरी यूनिट में- प्रमाणमीमांसा एवं तत्वमीमांसा की चर्चा कर चुके हैं। आज हम उसी क्रम में आचारमीमांसा का अध्ययन करेंगे।
आचारमीमांसा क्या है
किसी भी दर्शन को समझने के लिए उसके अन्तर्गत तीन मुख्य विषयों का अध्ययन किया जाता है।
- प्रमाणमीमांसा (प्रमाणों का विश्लेषण)
- तत्वमीमांसा (तत्व, ईश्वर आदि का अध्ययन)
- मूल्यमीमांसा (आचार, तर्क, सौन्दर्य आदि का अध्ययन)
मित्रों, उपरोक्त तीन विषय किसी भी दर्शन के महत्वपूर्ण बिन्दु होते हैं। इन तीनों बिन्दुओं में अन्तिम बिन्दु- मूल्यमीमांसा है।
मूल्यमीमांसा के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के नैतिक, आध्यात्मिक आदि मूल्यों का
गहन चिन्तन एवं अध्ययन किया जाता है। इसी मूल्यमीमांसा के अन्तर्गत आचारमीमांसा का
अध्ययन किया जाता है।
मूल्यमीमांसा के तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दु
- आचारमीमांसा (ETHICS)
- तर्कशास्त्र (LOGIC)
- सौन्दर्यमीमांसा (AESTHETICS)
प्यारे पाठकों, UGC NET Sanskrit 25 कोड
के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत भारतीय दर्शनों के सन्दर्भ में आचारमीमांसा का विषय लगा
हुआ है। जिसका कि आज हम यंहा अध्ययन कर रहे हैं।
आचारमीमांसा (AchaarMimansa)
आचारमीमांसा को दूसरे शब्दों में नीतिशास्त्र अथवा नीतिमीमांसा भी कहते हैं। आचारमीमांसा के अन्तर्गत नैतिक-अनैतिक, उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ आदि विषयों का गहन चिन्तन किया जाता है। आचार अर्थात्- आचरण।
आचार शब्द का सीधा अर्थ होता है- आचरण। अतः दर्शन शास्त्रों में आचार अथवा आचरण के विषय में किस प्रकार की बातें कही गयी हैं। इसी को आचारमीमांसा कहा जाता है।
नीचे UGC NET Sanskrit 25 Code की परीक्षादृष्टि को ध्यान
में रखते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण आचारमीमांसाओं का उल्लेख किया गया है।
प्रमुख आचारमीमांसा (तालिका के माध्यम से)
प्रमुख
आचार (वाद) |
सम्बन्धित
दर्शन |
आरम्भवाद |
नैयायिक |
अनुमितिवाद |
श्रीशंकु (न्याय) |
अन्यथाख्यातिवाद |
नैयायिक |
परिणामवाद |
सांख्य, योग, वेदान्त तथा विज्ञानवादी |
भुक्तिवाद |
भट्टनायक (सांख्य) |
विवेकख्याति |
सांख्य |
विवर्तवाद |
वेदान्ती |
अभिव्यक्तिवाद |
अभिनवगुप्त (वेदान्त) |
अनिर्वचनीयख्याति |
वेदान्त (शंकराचार्य) |
दृष्टिसृष्टिवाद |
शंकराचार्य |
पूर्वमीमांसा दर्शन से सम्बन्ध कुछ
महत्त्वपूर्ण वाद
त्रिपुटीप्रत्यक्षवाद |
प्राभाकर |
ज्ञाततावाद |
कुमारिल |
अख्यातिवाद |
प्रभाकर |
उत्पत्तिवाद
(कृतिवाद) |
भट्टलोल्लट
(मीमांसा) |
विपरीतख्यातिवाद |
कुमारिल |
नास्तिक दर्शनों के कुछ महत्त्वपूर्ण
प्रमुख वाद
असत्ख्यातिवाद |
माध्यमिक बौद्ध |
आत्मख्यातिवाद |
विज्ञानवादी बौद्ध |
अनात्मवाद |
शून्यवादी, चार्वाक |
शून्यवाद |
बौद्ध |
सुखवाद |
चार्वाक |
भूतचैतन्यवाद |
चार्वाक |
अनीश्वरवाद |
चार्वाक |
देहात्मवाद |
चार्वाक |
प्रत्यक्षवाद |
चार्वाक |
बौद्धदर्शन के कुछ अन्य प्रमुख वाद
बाह्यप्रत्यक्षवाद |
वैभाषिक बौद्ध |
सर्वास्तित्ववाद |
वैभाषिक बौद्ध |
बाह्यनुमेयवाद |
सौत्रान्तिक बौद्ध |
विज्ञानवाद |
योगाचार बौद्ध |
शून्यवाद |
माध्यमिक बौद्ध |
जैनदर्शन के कुछ प्रमुख महत्त्वपूर्ण वाद
स्यादवाद |
जैनदर्शन |
अनेकान्तवाद |
जैनदर्शन |
सापेक्षतावाद |
जैनदर्शन |
सप्तभंगीन्यायवाद |
जैनदर्शन |
जैन दर्शन का सप्तभंगी न्याय भारतीय दर्शनों में अत्यधिक प्रसिद्ध है। सापेक्षकज्ञान के आधार पर जैन दर्शन में किसी भी बात को कहने के लिए सात सिद्धान्त बताए गये, जिन्हें कि सप्तभंगी न्याय के रूप में जाना जाता है।
जैनदर्शन का मानना है कि इस सृष्टि में कोई भी व्यक्ति किसी भी
वस्तु का पूर्णज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। वह केवल आंशिक ज्ञान ही जान सकता है।
इसके लिए जैन दर्शन में एक प्रसिद्ध उदाहरण भी मिलता है-
- एक अंधा व्यक्ति हाथी के पैर छूकर कहता है कि हाथी खम्बे की तरह विशाल है।
- दूसरा व्यक्ति हाथी के कान छूकर कहता है कि हाथी सूपडे की तरह है।
- अगला व्यक्ति हाथी की सूंड छूकर कहता है कि हाथी- अजगर के समान है।
- अगला व्यक्ति हाथी की पूँछ छूकर कहता है कि हाथी- रस्सी की तरह है।
इस प्रकार जैन दर्शन का मानना है कि केवल
प्रत्यक्ष आंख वाला व्यक्ति ही हाथी के स्वरूप को समझ पाता है। इस प्रकार जैन
दर्शन में सप्तभंगी न्याय भी बहुत प्रसिद्ध है।
1. स्यादस्ति। |
2. स्यात् नास्ति। |
3. स्यादस्ति च नास्ति च। |
4. स्याद् अव्यक्तम्। |
5. स्याद् अस्ति च अव्यक्तम्। |
6. स्यात् नास्ति च अव्यक्तं च। |
7. स्याद् अस्ति च नास्ति च अव्यक्तं च। |
प्रामाण्य के विषय में विभिन्न दर्शनों के
प्रमुख मत
स्वतः प्रामाण्य,स्वतः अप्रामाण्य |
सांख्य |
परतः प्रामाण्य,परतः अप्रामाण्य |
नैयायिक |
परतः प्रामाण्य,स्वतः अप्रामाण्य |
बौद्ध |
स्वतः प्रामाण्य, परतः अप्रमाण्य |
मीमांसक |
स्वतः प्रामाण्य, परतः अप्रमाण्य |
वेदान्ती |
निष्कर्ष-
प्यारे मित्रों, इस प्रकार आज के इस लेख के माध्यम से हमने UGC NET Sanskrit 25 कोड के अन्तर्गत आचारमीमांसा का अध्ययन किया।
प्यारे पाठकों, यदि आपके पास UGC NET Sanskrit Syllabus न हो तो आप हमारी वेबसाइट से अभी प्राप्त कर सकते हैं।
मित्रों, भारतीय दर्शनों के अन्तर्गत प्रमाणमीमांसा, तत्त्वमीमांसा एवं आचारमीमांसा इन तीनों विषयों की चर्चा हो चुकी है। यदि आपने इससे पूर्व के विषय- प्रमाणमीमांसा व तत्त्वमीमांसा न पढें हों तो आप उन्हे भी जरूर पढ लीजिएगा।
प्रेयांसः मित्राणि, हमें उम्मीद है कि आप आज के इस विषय को अच्छे ढंग से समझ चुके होंगे। यदि आपको यह विषय अच्छा लगा तो हमें कमेंट करके जरूर बताएँ।
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1 Comments
Dhanywad guru ji 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआपको यह लेख (पोस्ट) कैंसा लगा? हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएँ। SanskritExam. Com वेबसाइट शीघ्र ही आपके कमेंट का जवाब देगी। ❤