दर्शपूर्णमास यज्ञ क्या होता है• ? | दर्शपौर्णमास यज्ञ का परिचय • [ दर्श पौर्णमास यज्ञ ]
अयि संस्कृतानुरागिवृन्द! वेदों में याग अथवा यज्ञ की महिमा का वर्णन बहुत अधिक मात्रा में मिलता है। "यज्ञ एक अत्यन्त श्रेष्ठ कर्म है", "यज्ञ से मुक्ति है" - "यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म" (शतपथ)
दो प्रकार से अभिव्यक्त किए जाते हैं। एक - श्रौतयाग दूसरा- स्मार्तयाग। जैंसे कि उनका नाम से इनका अर्थ स्पष्ट होता है। श्रौत अर्थात् श्रुति/वेद के द्वारा किया जाने वाला यज्ञ (याग)। स्मार्त- अर्थात् स्मृति प्रतिपादित (याग)।
जी हां! श्रौतयाग वे याग होते हैं, जिसमें श्रुति अर्थात् वेद के मंत्रो का प्रयोग किया जाता है, जबकि स्मार्त याग; इस प्रकार के याग होते हैं, जिनमें स्मृति, पुराण आदि लौकिक ग्रंथों के मंत्रों का प्रयोग भी किया जाता है।
सामन्यतः यदि देखा जाए तो, वेदों में कई प्रकार से यागों (यज्ञों) का विभाजन किया जाता है। कई प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया जाता है। ये बहुत प्रकार के यागों में श्रौतयाग सर्वाधिक महत्त्वध्यायी होता है।
चूँकि, श्रौतयाग श्रुति के (वेदों के) मंत्रों के द्वारा होते हैं। अतः इनकी संख्या भी विस्तृत है, हालाँकि इनमें से - अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमासौ, चातुर्मास्यानि, पशुयाग, सोमयाग ये पाँच प्रकार के श्रुतिप्रतिपादित यज्ञ अति प्रसिद्ध हैं।
श्रौतयाग क्या है? - एक परिचय (Introduction)
यज्ञ में अग्नि सामन्यतः तीन प्रकार से प्रसिद्ध है। १- गार्हपत्य २-आहवनीय ३- दक्षिणाग्नि।
गार्हपत्य- हवि आदि संस्कार करना।
आहवनीय- हवन आदि कथानक सम्पन्न करना।
दक्षिणाग्नि- पितृसम्बन्धी कृत्य करना।
ये तीनों का विधिपूर्वक स्थापन करना ही "श्रौताधान" कहा जाता है। इन अग्नियों में क्रियमाण कर्म ही श्रौतकर्म कहलाते हैं। श्रौतयाग या श्रौतकर्म का अपना एक विशिष्ट महत्व है। यंहा कुछ महत्वपूर्ण श्रौतयागों का वैशिष्ट्यसहित वर्णन किया जा रहा है।
कुछ महत्वपूर्ण श्रौतयाग (Vedic Literature)
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दर्शपूर्णमास यज्ञ (याग) / दर्श पौर्णमास यज्ञ
यह एक प्रकार का अनन्यतम अतिविशिष्ट श्रौतयाग है। दर्श का अर्थ होता है - अमावस्या और पूर्णमास अर्थात् पूर्णिमा। अमावस्या व पूर्णिमा को होने के कारण इस याग को दर्शपूर्णमास याग (यज्ञ) कहा जाता है। नियमानुसार इस यज्ञ को करने का इच्छुक सपत्नीक होना चाहिए और वेदों के अनुसार इस यज्ञ को आजीवन करना अभीष्ट है।
चातुर्मास्य यज्ञ (याग) क्या होता है?
इस याग को कुल चार महीने तक किया जाता है। माना जाता है कि भगवान नारायण चार महीने तक अपनी नींद में मग्न रहते हैं। जिसके फलस्वरूप उनकी स्तुति के लिए चार महीने तक व्रत नियम रखे जाते हैं।
यही वेदों में चातुर्मास्य के रूप में जाना जाता है। कात्यायन श्रौतसूत्र के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा से लेकर वैशाख महीने की पूर्णिमा तक इस ओरग को करने का उल्लेख मिलता है। चातुर्मास्य में चार पर्वों की गणना की जाती है।
१- वैश्यदेव
२- वरुण-प्रधान
३- साकेमध
४- शुनासीरियम्
पुराणों में कहा गया है कि भगवान विष्णु चार महीने पाताल लोक में जाते हैं, और चार महीने तक अपनी क्षीरसागर की शाय्या में मग्न रहते हैं। अतः इस समय धार्मिक कृत्यों का निषेध भी देखने को मिलता है।
सौत्रामणि यज्ञ (याग) क्या होता है?
सु + त्रमण अर्थात् उत्तम रीति से सुरक्षा करना। यह याग इन्द्र की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। सौत्रमणि यज्ञ एक श्रौतयाग है। यह यज्ञ भी दो प्रकार से होता था। एक - स्वतंत्र (यह केवल ब्राह्मण के लिए है) दूसरा- अंगभूत; इसको क्षत्रियादि कर सकते हैं।
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अयि संस्कृतसमुपासकवृन्द! वेदों के सभी यागों में श्रौतयाग का अपना विशिष्ट महत्व है। श्रौतयागों में भी कतिपय अग्निष्टोमादि यज्ञ अति विशिष्ट और प्रसिद्ध हैं। सम्भवतः श्रुतिमूलकता होने से ही इनकी अत्यधिक प्रसिद्धि है।
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