इस विषय की अच्छी ढंग से चर्चा कर रहे हैं। यह यूजीसी नेट संस्कृत के - २५/७३ दोनों कोड में लगा हुआ है।
आज का विषय - ब्राह्मणग्रंथों का परिचय
ब्राह्मण ग्रंथ परिचय
ब्राह्मण ग्रंथों की संख्या तेरह मानी जाती है। ब्राह्मण ग्रंथ अर्थात् वेदों के व्याख्यान ग्रंथ। संहिताओं कर व्याख्यानपरकग्रंथ।
ऋग्वेद - (१) - ऐतरेय (३) - शांखायान
यजुर्वेद - शतपथ
सामवेद - प्रौढ़, षड्विंश, सामविधानब्राह्मण, आर्षेयब्राह्मण, देवताध्याय, वंशब्राह्मण, जैमिनीय, संहितोपनिषद्ब्राह्मण।
अथर्ववेद - गोपथ
ब्राह्मण ग्रन्थ
ब्राह्मण शब्द के तीन अर्थ----
ब्रह्म वै मन्त्रः -- (शतपथ ब्रा०) मन्त्रों के व्याख्यान ग्रन्थ
बह्म यज्ञः -- (शतपथ ब्रा०) यज्ञ के विधि विधानपरक
पवित्र एवं रहस्यात्मक ग्रंथ ।। ब्रह्मन् + अण् (नपुं०)
अन्य अर्थ
ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां च व्याख्यान ग्रन्थाः -- (भट्टभास्कर)
नैरुक्त्यं यत्र मन्त्रस्य विनियोगः प्रयोजनम्
प्रतिष्ठानं विधिश्चैव ब्राह्मणं तदिहोच्यते ।।--- (वाचस्पति मिश्र)
विस्तार से परिचय
नैरुक्त्य -- निरुक्त ( निर्वचन )
विनियोग -- मन्त्रों का यज्ञो में विनियोग
प्रयोजन -- प्रतिष्ठान ( अर्थवाद ) स्तुति - निंदा
विधि -- यज्ञों के विधि- विधानों का वर्णन
मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् - आपस्तम्ब श्रौतसूत्र
कर्मचोदना ब्राह्मणानि --- आपस्तम्ब ।।
प्रतिपाद्य विषय
यज्ञ एवं यज्ञ विधानों का यज्ञ प्रक्रिया का सर्वांगीण विवेचन ।
मुख्य प्रयोजन ---- विधि ( यज्ञों का विधि - विधान आदि )
शाबरभाष्यम् के अनुसार --- १० प्रयोजन ( प्रतिपाद्य विषय )
- हेतु
- निर्वचन
- निन्दा
- प्रशंसा
- संशय
- विधि
- परक्रिया
- पुराकल्प
- व्यवधारण
- उपमान
विस्तृत रूप में परिभाषा
हेतु - यज्ञ में कोई कार्य क्यों करें -- उसका कारण - हेतु आदि।
निर्वचन - शब्दों की निरुक्ति (व्युत्पत्ति) बताना।
निन्दा - यज्ञ में निषिद्ध कर्मों की निन्दा करना। जैंसे यज्ञ में असत्य भाषण की निन्दा करना।
प्रशंसा - यज्ञ में विहित कार्यों की प्रशंसा करना। जैंसे " यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म " यज्ञ सबसे श्रेष्ठ कर्म है - आदि प्रशंसा।
संशय - किसी यज्ञ कर्म में कोई सन्देह हो तो उसका निराकरण करना।
विधि - यज्ञ कर्मों की पूरी विधि । विधान आदि।
परक्रिया - परोपकार आदि कर्तव्यों का वर्णन।
पुराकल्प - प्राचीन घटनाओं का वर्णन करना ।
व्यवधारण/ कल्पना - परिस्थिति के अनुसार कार्य की कल्पना
उपमान - कोई उपमा आदि देकर विषयों का वर्णन करना ।
जैंसे " चरैवेति " में सूर्य की उपमा दी गयी । जैंसे सूर्य निरन्तर चलता रहता है वैंसे ही- चरैवेति चरैवेति।
ब्राह्मण ग्रंथ विशेषता ➡ वैदिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण ग्रन्थों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। ब्राह्मण ग्रंथ परीक्षा दृष्टि से भी तथा वेदों को समझने के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं।
इन ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-यागादि का विस्तृत वर्णन है। इसी के साथ ब्राह्मण ग्रंथो में कर्मकाण्डीय विधि-विधान आदि का अत्यन्त गंभीर एवं विश्लेषणात्मक वर्णन किया गया है।
ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ
एतरेय ब्राह्मण
- रचयिता - महीदास
- अध्याय - ४०
- पंचक - ८
- कण्डिका - २८५
वर्णन ➡ हौत्रकर्म हेतु ऋचाओं के विनियोग का निरूपण।
• सोमयाग का वर्णन।
ऐतरेय ब्राह्मण में इन्द्र को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है ➡
स वै देवानामोजिष्ठो बलिष्ठः सत्तमः पारयिष्णुत्तमः।
( एतरेय - ७ / १६ )
परीक्षा उपयोगी तथ्य
प्रमुख वर्णन ➡
शुनः शेप आख्यान
सोम हरण वर्णन
सोम उत्पत्ति वर्णन
देवासुर युद्ध वर्णन
विश्वामित्र व वामदेव विषय
यज्ञदेवता वर्णन
वषट्कार के षट्तत्त्व
साम्राज्याभिषेक
क्षत्रिय यज्ञ
अध्याय के अनुसार वर्णन
१ से १६ तक ➡ अग्निष्टोम का वर्णन
१७ व १८ में ➡ गवामयन सत्र विचार
१९ से २४ तक ➡ द्वादशाहयाग का वर्णन
२५ से ३२ तक ➡ अग्निहोत्र की व्यवस्था
३३ से ४० तक ➡ राज्याभिषेक वर्णन
पंचिका के अनुसार वर्णन
१ व २ पंचिका ➡ अग्निष्टोम नामक सोमयाग की विधि
३ व ४ पंचिका ➡ अग्निहोत्र ( प्रातः सांय सवन वर्णन )
५ में ➡ द्वादशाह याग वर्णन
६ में ➡ सोमयागों का वर्णन
७ में ➡ राजसूय तथा शुनः शेप वर्णन
८ में ➡ ऐतिहासिक वर्णन - राज्याभिषेक
कौषीतकि ब्राह्मण
इसका दूसरा नाम शांखायन ब्राह्मण भी है। शांखायन शाखा से सम्बद्ध होने से इसका नाम शांखायन पड़ा।
- अध्याय - ३०
- खण्ड - २६६
अध्याय अनुसार वर्णन
१ में ➡ अग्न्याधान
२ में ➡ अग्निहोत्र
३ में ➡ दर्श पौर्णमास यज्ञ- 👈Click
४ में ➡ अनुनिर्वाप्या आदि ११ विशेष इष्टियाँ।
५ में ➡ चातुर्मास्य
६ में ➡ ब्रह्मा के कर्तव्य
७ से ३० तक ➡ सोमयज्ञ का विस्तृत वर्णन
यजुर्वेद ब्राह्मण
शतपथ - शु०यजु०
शुक्लयजुर्वेद का यह ब्राह्मण ग्रंथ अत्यन्त ही प्रसिद्ध है। शतपथ ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण ही संहिता ग्रंथों में तुल्य स्वरचिह्नों से युक्त हैं।
यह स्वरचिह्न इन दोनों ब्राह्मण ग्रंथों की प्राचीनता को प्रदर्शित करते हैं। शतपथ ब्राह्मण की रचनाकाल की बात करें ,तो इसकी रचना २५०० ईसा पूर्व के लगभग माना जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
शतपथ ब्राह्मण के रचयिता याज्ञवल्क्य माने जाते हैं, जो कि वाजसनि के पुत्र के रूप में जाने जाते हैं।
याज्ञवल्क्य को वाजसनेय के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनके पिता वाजसनि थे।
वाजसनि का अर्थ होता है - अन्नदाता वाज=अन्न , सनि= दाता ।
भागवतमहापुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य के पिता का नाम देवरात था।
स्कन्दपुराणानुसार याज्ञवल्क्य की माता सुनन्दा थी।
याज्ञवल्क्य की दो पत्नियाँ थीं - (१)- मैत्रेयी (२)- कात्यायनी
शतपथ ब्राह्मण में १०० अध्याय होने के कारण इसे शतपथ कहा जाता है।
शतपथ ब्राह्मण
- माध्यन्दिन शतपथ - १०० अध्याय
- काण्व शतपथ - १०४ अध्याय
माध्यन्दिन शतपथ ब्राह्मण
- ब्राह्मण ➡ शतपथ
- संहिता ➡ शु०यजु०
- अध्याय ➡ १००
- काण्ड ➡ १४
- ब्राह्मण ➡ ४३८
- कण्डिका ➡ ७६२४
ध्यातव्य तथ्य
माध्यन्दिन शाखीय शतपथ ब्राह्मण १४ भागों में विभक्त है। इन विभक्त भागों को काण्ड के रूप में जाना जाता है, जिनकी संख्या चौदह १४ है। पुनः काण्डों के भी विभाग किये गये , जिनको अध्याय कहा गया। कुल अध्याय - १०० हैं।
पुनः अध्यायों के भी उपविभाग, जो कि ब्राह्मण के रूप में जाने जाते हैं । इनकी संख्या ४३८ है। अन्त में इन ब्राह्मणों को कण्डिकाओं में विभाजित किया गया , इनकी संख्या - ७६२४ है।
उपसंहार Conclusion :
मित्रों! अन्ततः मैं आपको यह कहना चाहुंगा कि वैदिक साहित्य के अन्तर्गत सभी बिन्दु महत्वपूर्ण हैं । UGC NET Sanskrit 2022 के दोनों कोड में "ब्राह्मण ग्रंथों का परिचय" यह विषय लगा है।
अतः आप सभी इस विषय को अधिक से अधिक पढें। हमें अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें! यह पोस्ट आपको कैंसी लगी!
धन्यवादः Thanking
5 Comments
Sir....you explain too good...it is too much - too much helpful! Thanks sir
ReplyDeleteबहु उत्तमम् महोदय: !
ReplyDeleteबहोंत मेहनत की है !
उत्कृष्ट माहिती ! ब्राह्मण ग्रन्थों के बारे में लोगों के पास समझ हैं ही नहीं !
आप अच्छी तरह से समझाया हैं !
धन्यवाद: !
Thanks a lot
DeleteAap ki utkrista ta ko naman karte hin
ReplyDeleteThanks a lot
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